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तृतीय अंक
 

पहला नागरिक—वेण और कंस का शासन क्या दूसरे प्रकार का रहा होगा?

दूसरा नाग॰—ब्याह की वेदी से वर-वधू को घसीट ले जाना,इतने बड़े नागरिक का यह अपमान! अन्याय है।

तीसरा नाग॰—सो भी अमात्य राक्षस और सुवासिनी को! कुसुमपुर के दो सुन्दर फूल!

चौथा नाग॰—और सेनापति, मंत्री, सबों को अन्धकूप में डाल देना।

मौर्य्य—मंत्री, सेनापति और अमात्यों को बन्दी बना कर जो राज्यकरता है, वह कैसा अच्छा राजा है नागरिक! उसकी कैसी अद्‌भुत योग्यता है! मगध को गर्व होना चाहिए।

पहला नाग॰—गर्व नहीं वृद्ध! लज्जा होनी चाहिए। ऐसा जघन्य अत्याचार!

वर॰—यह तो मगध का पुराना इतिहास है। जरासंघ का यह अखाड़ा है। यहाँ एकाधिपत्य की कटुता सदैव से अभ्यस्त है।

दूसरा नाग॰—अभ्यस्त होने पर भी अब असह्य है।

शक॰—आज आप लोगों को बड़ी वेदना है, एक उत्सव का भंग होना अपनी आँखों से देखा है, नहीं तो जिस दिन शकटार को दण्डमिला था, एक अभिजात नागरिक की सकुटुम्ब हत्या हुई थी, उस दिन जनता कहाँ सो रही थी।

तीसरा नाग॰—सच तो, पिता के समान हम लोगों की रक्षा करनेवाला मंत्री शकटार—हे भगवान!

शक॰—मैं ही हूँ। कंकाल-सा जीवित समाधि से उठ खड़ा हुआ हूँ। मनुष्य मनुष्य को इस तरह कुचल कर स्थिर न कर सकेगा। मैं पिशाच बनकर लौट आया हूँ—अपने निरपराध सातों पुत्रों की निष्ठुर हत्या का प्रतिशोध लेने के लिए। चलोगे साथ?

चौथा नाग॰—मंत्री शकटार! आप जीवित हैं?