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चतुर्थ अंक
 


माल॰—आर्य्य, प्रणाम करती हूँ। सम्राट ने श्रीचरणों में सविनय प्रणाम करके निवेदन किया है कि आपके आशीर्वाद से दक्षिणापथ में अपूर्व सफलता मिली, किन्तु सुदूर दक्षिण जाने के लिए आपका निषेध सुनकर लौटा आ रहा हूँ। सीामन्त के राष्ट्रों ने भी मित्रता स्वीकार कर ली है।

चाणक्य—मालविका, विश्राम करो। सब बातों का विवरण एक-साथ ही लूँगा।

माल॰—परन्तु आर्य्य स्वागत का कोई उत्साह राजधानी में नहीं।

चाणक्य—मालविका, पाटलिपुत्र षड्‌यन्त्रों का केन्द्र हो रहा है।सावधान! चन्द्रगुप्त के प्राणों की रक्षा तुम्हीं को करनी होगी।