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चतुर्थ अंक
 
[ नायक का प्रस्थान ]

एक सैनिक––मुझे क्या आज्ञा है, मगव जाना होगा?

चन्द्र०––आर्य्य शकटार को पत्र देना, और सब समाचार सुना देना। मैने लिख तो दिया है, परन्तु तुम भी उनसे इतना कह देना कि इस समय मुझे सैनिक और शस्त्र तथा अन्न चाहिए। देश में डौडी फेर दे कि आय्यवर्त्त में शस्त्र ग्रहण करने में जो समर्थ है, सैनिक है और जितनी सम्पत्ति है, युद्ध-विभाग की है। जाओ।

[ सैनिक का प्रस्थान ]

दूसरा०––शिविर आज कहाँ रहेगा देव?

चन्द्र०––अश्व की पीठ पर सैनिक! कुछ खिला दो, और अश्व बदलो। एक क्षण विश्राम नही। हाँ ठहरो तो, सब सेना-निवेशो मे आज्ञापत्र भेज दिए गये?

दूसरा०––हाँ देव!

चन्द्र०––तो अब मै बिजली से भी शीघ्र पहुँचना चाहता हूँ। चलो, शीघ्र प्रस्तुत हो।

[ सब का प्रस्थान ]

चन्द्र०––( आकाश की ओर देख कर )––अदृष्ट! खेल न करना! चन्द्रगुप्त मरण से भी अधिक भयानक को आलिंगन करने के लिए प्रस्तुत है! विजय––मेरे चिर सहचर!

[ हँसते हुए प्रस्थान ]