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चन्द्रगुप्त
२०८
नयनों में मदिर विलास लिये,
उज्ज्वल आलोक खिला।
हँसती-सी सुरभि सुधार रही,
अलकों की मृदुल अनी।
सखे! वह प्रेममयी रजनी।
मधु मन्दिर-सा यह विश्व बना,
मीठी झनकार उठी।
केवल तुमको थी देख रही—
स्मृतियों की भीड़ घनी।
सखे! वह प्रेममयी रजनी।
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