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चन्द्रगुप्त
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कार्ने॰—क्यों पिताजी, चन्द्रगुप्त ने क्या अपराध किया है?

सिल्यू॰—हैं! अभी बताना होगा कार्नेलिया! भयानक युद्ध होगा, इसमें चाहे दोनों का सर्वनाश हो जाय!

कार्ने॰—युद्ध तो हो चुका। अब मेरी प्रार्थना आप सुनेंगे पिताजी! विश्राम लीजिए! चन्द्रगुप्त का तो कोई अपराध नहीं, क्षमा कीजिए पिताजी! (घुटने टेकती है)

सिल्यू॰—(बनावटी क्रोध से)—देखता हूँ कि, पिता को पराजित करने वाले पर तुम्हारी असीम अनुकम्पा है।

कार्ने॰—(रोती हुई)—मैं स्वयं पराजित हूँ! मैंने अपराध किया है पिताजी! चलिए, इस भारत की सीमा से दूर ले चलिए, नहीं तो मैं पागल हो जाऊँगी।

सिल्यू॰—(उसे गले लगाकर)—तब मैं जान गया कार्नी, तू सुखी हो बेटी! तुझे भारत की सीमा से दूर न जाना होगा—तू भारत की सम्राज्ञी होगी।

कार्ने॰—पिताजी!

[प्रस्थान]