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रण-चतुर नेता बन गया। धीरे-धीरे उसने सीमावासी पार्वतीय लोगों को एक में मिला लिया। चन्द्रगुप्त और पर्वतेश्वर विजय के हिस्सेदार हुए और सम्मिलित शक्ति से मगध-राज्य विजय करने के लिए चल पड़े। अब यह देखना चाहिए कि चन्द्रगुप्त और चाणक्य की सहायक सेना में कौन-कौन देश की सेनाएँ थी और वे कब पंजाब से चले।

बहुत-से विद्वानों का मत है कि जो सेना चन्द्रगुप्त के साथ थी, वह ग्रीको की थी। यह बात बिल्कुल असंगत नही प्रतीत होती, जब 'फिलिप' तक्षशिला के समीप मारा गया, तो सम्भव है कि बिना सरदार की सेना में से किसी प्रकार पर्वतेश्वर ने कुछ ग्रीको की सेना को अपनी ओर मिला लिया हो जो कि केवल धन की लालच से ग्रीस छोड़कर भारतभूमि तक आये थे। उसी सम्मिलित आक्रमणकारी सेना में कुछ ग्रीको का होना असम्भव नही है, क्योंकि मुद्राराक्षस के टीकाकार ढुण्ढि लिखते हैं—

"नन्दराज्यार्धपणनात्समुत्थाप्य महाबलम्।
पर्वतेन्द्रो म्लेच्छवल न्यरुन्धत्कुसुम पुरम्॥"

तैलंग महाशय लिखते है कि "The Yavanas referred in our play Mudrarakshasa were probably Some of frontier tribes" कुछ तो उस सम्मिलित सेना के नीचे लिखे हुए नाम है, जिन्हें कि महाशय तैलंग ने लिखा है।

मुद्राराक्षस— तैलंग—
शक सीदियन
यवन (ग्रीक?) अफगान
किरात सेवेज ट्राइब
पारसीक परशियन
वाल्हीक बैक्ट्रियन

इस सूची के देखने से ज्ञात होता है कि ये सब जातियाँ प्राय भारत की उत्तर-पश्चिम सीमा में स्थित है। इस सेना में उपर्युक्त जातियाँ प्रायः