पृष्ठ:चन्द्रगुप्त मौर्य्य.pdf/३२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
३१

सम्मिलित रही हो तो असम्भव नहीं है। चन्द्रगुप्त ने असभ्य सेनाओं को ग्रीक प्रणाली से शिक्षित करके उन्हें अपने कार्य-योग्य बनाया। मेरा अनुमान है कि यह घटना ३२३ ई॰ पू॰ मे हुई, क्योंकि वही समय सिकन्दर के मरने का है। उसी समय यूडेमिस नामक ग्रीक कर्म्मचारी और तक्षशिलाधीश के कुचक्र से फिलिप के द्वारा पुरु (पर्वतेश्वर) की हत्या हुई थी। अस्तु, पंजाब प्रान्त एक प्रकार से अराजक हो गया और ३२२ ई॰ पू॰ में इन सबो को स्वतन्त्र बनाते हुए ३२१ ई॰ पू॰ में मगध-राजधानी पाटलीपुत्र को चन्द्रगुप्त ने जा घेरा।[१]



मगध में चन्द्रगुप्त

अपमानित चन्द्रगुप्त बदला लेने के लिए खड़ा था, मगध-राज्य की दशा बड़ी शोचनीय थी। नन्द आन्तरिक विग्रह के कारण जर्जरित हो गया था, चाणक्य-चालित म्लेच्छ-सेना कुसुमपुर को चारों ओर से घेरे थी। चन्द्रगुप्त अपनी शिक्षित सेना को बराबर उत्साहित करता हुआ सुचतुर रण-सेनापति का कार्य करने लगा।

पन्द्रह दिन तक कुसुमपुर को बराबर घेरे रहने के कारण और बार-बार खण्ड-युद्ध मे विजयी होने के कारण चन्द्रगुप्त एक प्रकार से मगध-विजयी हो गया। नन्द ने, जो कि पूर्वकृत पापों से भीत और आतुर हो गया था, नगर से निकल कर चले जाने की आज्ञा माँगी। चन्द्रगुप्त इस बात से सहमत हो गया कि धननन्द अपने साथ जो


  1. Justinus says:

    Sandrocottus gave liberty to India after Alexander's retreat but soon converted the name of liberty into servitude after his success, subjecting those whom he had rescued from foreign domination to his Own authority

    H of A.S Lit