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बाहुबल और चाणक्य के बुद्धिबल से, सामान्य भू-स्वामी चन्द्रगुप्त, मगध-साम्राज्य के सिंहासन पर बैठा ।

बौद्धो की पहली सभा कालाशोक या महापद्म के समय में हुई । बुद्ध के ९० वर्ष बाद यह गद्दी पर बैठा और इसके राज्य के दस वर्ष बाद सभा हुई, उसके बाद उसने १८ वर्ष राज्य किया। यह ११८ वर्ष का समय, बुद्ध के निर्वाण से कालाशोक के राजत्व-काल तक है । कालाशोक का पुत्र २२ वर्ष तक राज्य करता रहा, उसके बाद २२ वर्ष तक नन्द, उसके बाद चन्द्रगुप्त को राज्य मिला । ( ११८+२२+२२ ) बुद्ध-निर्वाण के १६२ वर्ष बाद चन्द्रगुप्त को राज्य मिला । बुद्ध का समय यदि ५४३ ई० पू० माना जाय, तब तो (५४३-१६२) = ३८१ ई० पू० मे ही चन्द्रगुप्त का राज्यारोहण निर्धारित होता है। दूसरा मत मैक्समूलर आदि विद्वानो का है कि बुद्ध-निर्वाण ४७७ ई० पू० में हुआ। इस प्रकार उक्त राज्यारोहण का समय ३१५ ई० पू० निकलता है । इससे ग्रीक समय का मिलान करने से एक तो ४० बर्ष बढ जाता है, दूसरा ५ या ६ वर्ष घट जाता है ।

महावीर स्वामी के निर्वाण के १५५ वर्ष बाद, चन्द्रगुप्त जैनियो के मत से, राज्य पर बैठा, ऐसा मालूम होता है। आर्य-विद्या-सुधाकर के अनुसार ४७० विक्रम पू० मे महावीर स्वामी का वर्तमान होना पाया जाता है। इससे यदि ५२० ई० पू० मे महावीर स्वामी का निर्वाण मान लें, तो उसमें से ११५ घटा देने से ३६५ ई० पू० में चन्द्रगुप्त के राज्यारोहण का समय होता है जो सर्वथा असम्भव है । यह मत भी वहुत भ्रम-पूर्ण है।

पडित रामचन्द्र जी शुक्ल ने मेगास्थनीज़ की भूमिका में लिखा है कि ३१६ ई० पू० में चन्द्रगुप्त गद्दी पर बैठा और २९२ ई० पू० तक उसने २४ वर्ष राज्य किया ।

पडितजी ने जो पाश्चात्य लेखको के आधार पर चन्द्रगुप्त का राज्यारोहण समय लिखा है, वह भी भ्रम से रहित नहीं है, क्योकि स्ट्राबो के

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