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मतानुसार २९६ में Deimachos का मिशन बिन्दुसार के समय में आया था। यदि २९२ तक चन्द्रगुप्न का राज्य-काल मान लिया जाय, तो डिमाकस, चन्द्रगुप्त के राजत्व-काल ही में आया था, ऐसा प्रतीत हो गया, क्योकि शुक्लजी के मत मे ३१६ ई० पू० से २९२ ई० पू० तक चन्द्रगुप्त का राजत्व-काल हैं, डिमाकस के मिशन का समय २९६ ई० पू० जिसके अन्तर्गत हो जाता है। यदि हम चन्द्रगुप्त का राज्यारोहण ३२१ ई० पू० मे माने, तो उसमे से उसका राजत्व-काल २४ वर्ष घटा देने से २९७ ई० पू० तक उसका राजत्वकाल और २९६ ई० पू० में बिन्दुसार का राज्यारोहण और डिमाकस के मिशन का समय ठीक हो जाता है । ऐतिहासिको का अनुमान है कि “२५ वर्ष की अवस्था में चन्द्रगुप्त गद्दी पर बैठा” वह भी ठीक हो जाता है । क्योकि पूर्व-निर्धारित चन्द्रगुप्त के जन्म-समय ३४६ ई० पू० में २५ वर्ष घटा देने से भी ३२१ ई० पू० ही बचता है, जिससे यह सिद्ध होता है कि चन्द्रगुप्त पाटलीपुत्र में मगध-राज्य के सिंहासन पर ३२१ ई० पू० में आसीन हुआ ।

विजय

उस समय गंगा के तट पर दो विस्तृत राज्य थे, जैसा कि मेगास्थनीज़ लिखता है, एक प्राच्य ( Prassi ) और दूसरा गंगरिडीज ( Gangarideas ) । प्राच्य राज्य में अवन्ती, कोशल, मगध, वाराणसी, विहार आदि देश थे और दूसरा गगरिडीज गंगा के उस भाग के तट पर था, जो कि समुद्र के समीप में था । वह बंगाल था। गगरिडीज और गौड एक ही देश का नाम प्रतीत होता है । गोड राज्य का राजा, नन्द के अधीन था । अवन्ती में भी एक मध्य प्रदेश की राजधानी थी, वह भी नन्दाधीन थी। बौद्धो के विवरण से ज्ञात होता है कि ताम्म्रलिप्ति, जिसे अब तामलूक कहते है मिदनापुर जिले में
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  • अस्तीह नगरी लोके ताम्रलिप्तीति विश्रुता । तत स तत्पिता