पृष्ठ:चन्द्रगुप्त मौर्य्य.pdf/३७

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इस समय चन्द्रगुप्त का शासन भारतवर्ष में प्रधान था और छोटे-छोटे राज्य यद्यपि स्वतन्त्र थे ; पर वे भी चन्द्रगुप्त के शासन में सदा भयभीत होकर मित्र-भाव का वर्ताव रखते थे। उसका राज्य पाडुचेर और कनानूर से हिमालय की तराई तक तथा सतलज से आसाम तक था । केवल कुछ राज्य दक्षिण में, जैसे---केरल इत्यादि और पंजाब में वे प्रदेश, जिन्हें सिकन्दर ने विजय किया था, स्वतन्त्र थे, किन्तु चन्द्रगुप्त पर ईश्वर की अपार कृपा थी, जिसने उसे ऐसा सुयोग दिया कि वह भी ग्रीस इत्यादि विदेशो में अपना आतंक फैलावे ।

सिकन्दर के मर जाने के बाद ग्रीक जनरलो मे बड़ी स्वतन्त्रता फैली । ई० पू० ३२३ में सिकन्दर मरा । उसके प्रतिनिधि-स्वरूप पर्दिकस शासन करने लगा ; किन्तु इससे भी असन्तोष हुआ, सब जनरलो और प्रधान कर्मचारियों ने मिलकर एक सभा की । ई० पू० ३२१ मे सभा हुई और सिल्यूकस बैवीलोन की गद्दी पर बैठाया गया । टालमी आदि मिश्र के राजा समझे जाने लगे, पर आटिगोनस, जो कि पूर्वीय एशिया का क्षत्रप था, अपने बल को बढ़ाने लगा और इसी कारण सब जनरल उसके विरुद्ध हो गये, यहाँ तक कि ग्रीक-साम्राज्य से अलग होकर सिल्यूकस ने ३१२ ई० पूर्व में अपना स्वाधीन राज्य स्थापित किया। बहुत-सी लडाइयो के बाद सन्धि हुई और सीरिया इत्यादि प्रदेशो का आटिगोनस स्वतंत्र राजा हुआ। थ्रोस के लिसिमकास, मिस्र के टालेमी और बैवीलोन के समीप के प्रदेश में सिल्यूकस का आधिपत्य रहा । यह सन्धि ३१९ ई० पू० में हुई । सिल्यूकस ने उधर के विग्रहो को कुछ शान्त कर के भारत की ओर देखा ।

इसे भी वह ग्रीक साम्राज्य का एक अंश समझता था। आराकोसिया, वैक्ट्रिया, जेडोसिया आदि विजय करते हुए उसने ३०६ ई० पू० में भारत पर आक्रमण किया । चन्द्रगुप्त उसी समय दिग्विजय करता हुआ पंजाब की ओर आ रहा था और उसने जब सुना कि ग्रीक लोग फिर भारत पर चढ़ाई कर रहे है, वह भी उन्ही की