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ओर चल पड़ा । इस यात्रा में ग्रीक लोग लिखते है कि उसके पास ६,००,००० सैनिक थे, जिनमे ३०,००० घोड़े और ९,००० हाथी , बाकी पैदल थे ।* इतिहासो से पता चलता है कि सिन्धुतट पर यह युद्ध हुआ।

सिल्यूकस सिन्धु के उस तीर पर आ गया, मौर्य्य-सम्राट् इस आक्रमण से अनभिज्ञ था। उसके प्रादेशिक शासक, जो कि उत्तर- पश्चिम प्रान्त के थे, बराबर सिल्यूकस का गतिरोध करने के लिए प्रस्तुत रहते थे , पर अनेक उद्योग करने पर भी कपिशा आदि दुर्ग सिल्यूकस के हस्तगत ही हो गये । चन्द्रगुप्त, जो कि सतलज के समीप से उसी ओर बराबर बढ रहा था, सिल्यूकस की क्षुद्र विजयो से घबड़ा कर बहुत शीघ्रता से तक्षशिला की ओर चल पड़ा । चन्द्रगुप्त के बहुत थोड़े समय पहले ही सिल्यूकस सिन्धु के इस पार उतर आया और तक्षशिला के दुर्ग पर चढ़ाई करने के उद्योग में था। तक्षशिला की सूबेदारी बहुत बड़ी थी। उसे विजय कर लेना सहज कार्य न था । सिल्यूकस अपनी रक्षा के लिए मिट्टी की खाई बनवाने लगा ।

चन्द्रगुप्त अपनी विजयिनी सेना लेकर तक्षशिला में पहुँचा और मौर्य्य-पताका तक्षशिला-दुर्ग पर फहराकर महाराज चन्द्रगुप्त के आगमन की सूचना देने लगा । मौर्य्य-सेना ने आक्रमण करके ग्रीको की मिट्टी की परिखा और उनका व्यूह नष्ट-भ्रष्ट कर डाला। मौर्यों का वह भयानक आक्रमण उन लोगो ने बडी वीरता से सहन किया, ग्रीको का कृत्रिम दुर्ग उनकी रक्षा कर रहा था, पर कब तक ? चारो ओर से असंख्य मौर्य्य-सेना उस दुर्ग को घेरे थी । आपाततः उन्हे कृत्रिम दुर्ग छोड़ना पड़ा। इस बार भयानक लडाई आरम्भ हुई । मौर्य्य-सेना का चन्द्रगुप्त स्वंय नायक था । असीम उत्साह से मौर्य्य ने आक्रमण करके ग्रीक सेना को
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  • The same king (Chandragupta) traversed India with an army of 8,00,000 men and conquered the whole

( Plutarch in H AS Lit )