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छिन्न-भिन्न कर दिया। लौटने की राह में बड़ी बाधा-स्वरूप सिन्धु नदी थी, इसलिए अपनी टूटी हुई सेना को एक जगह उन्हे एकत्र करना पड़ा। चन्द्रगुप्त की विजय हुई। इसी समय ग्रीक जनरलो में फिर खलबली मची हुई थी। इस कारण सिल्यूकस को शीघ्र उस ओर लौटना था। किसी ऐतिहासिक का मत है कि इसी से सिल्यूकस शीघ्र ही सन्धि कर लेने पर बाध्य हुआ। इस सन्धि में ग्रीक लोगो को चन्द्रगुप्त और चाणक्य से सब ओर से दबना पड़ा।

इस सन्धि के समय में कुछ मतभेद है। किसी का मत है कि यह सन्धि ३०५ ई० पू० मे हुई और कुछ लोग कहते है कि ३०३ ई० पू० मे । सिल्यूकस ने जो ग्रीक-सन्धि की थी, वह ३११ ई० पू० मे हुई, उसके बाद ही वह युद्ध-यात्रा के लिए चल पडा। अस्तु आराकोसिया, जेडोसिया और वैक्ट्रिया आदि विजय करते हुए भारत तक आने मे पाँच वर्ष से विशेष समय नहीं लग सकता और इसी से उस युद्ध का समय, जो कि चन्द्रगुप्त से उससे हुआ था, ३०६ ई० पू० माना गया । तब ३०५ ई० पू० सन्धि का होना ठीक-सा जाॅचता है । सन्धि में चन्द्रगुप्त भारतीय प्रदेशों के स्वामी हुए । अफगानिस्तान और मकराना भी चन्द्रगुप्त को मिला और उसके साथ-ही-साथ कुल पञ्जाव और सौराष्ट्र पर चन्द्रगुप्त का अधिकार हो गया । सिल्यूकस । बहुत शीघ्र लौटने वाला था । ३०१ ई० पू० में होने वाले युद्ध के लिए उसे तैयार होना था, जिसमें कि Ipsus के मैदान में उसने अपने चिरशत्रु आटिगोनस को मारा था । चन्द्रगुप्त को इस ग्रीक विप्लव ने बहुत सहायता दी और उसने इसी कारण मनमाने नियमो मे सन्धि करने के लिए सिल्यूकस को बाध्य किया ।

पाटल आदि बन्दर भी चन्द्रगुप्त के अधीन हुए तथा काबुल में
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हिरात, कंधार, काबुल, मकराना, भी भारत में और प्रदेशो के साथ सिल्युकस ने चन्द्रगुप्त को दिया । V A Smith E H of India.

मेगास्थनीज हिरात के क्षत्रप साइवर्टियन के पास रहा करता था ।