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बौद्ध और जैन ये ही धर्म उस समय वैदिक धर्म के प्रतिकूल प्रचलित थे । बलिप्रदानादिक कर्म वैदिक ही होता रहा होगा ।

तीसरे, मृगया खेलने के समय कुजर पर सवारी निकलती । उस समय चन्द्रगुप्त स्त्री-गण से घिरा रहता था, जो धनुर्वाण आदि लिए उसके शरीर की रक्षा करती थी ।

उस समय राजमार्ग डोरी से घेरा रहता था और कोई उसके भीतर नही जाने पाता था ।

चन्द्रगुप्त राजसभा में बैठता तो चार सेवक आबनूस के बेलन से उसका अग सवाहन करते थे । यद्यपि चन्द्रगुप्त प्रबल प्रतापी राजा था , पर वह षड्यन्त्रो से शकित होकर एक स्थान पर सदा नही रहता था, जिसका कि मुद्राराक्षस में कुछ आभास मिलता है और यह मेगास्थनीज ने भी लिखा है।

हाथी, पहलवान, मेढा और गैंडों की लड़ाई भी होती थी, जिसे राजा और प्रजा दोनो बड़े चाव से देखते थे। बहुत से उत्सव भी नगर में हुआ करते थे।

प्रहरी स्त्रियाँ, जो कि मोल ली जाती थी, राजा के शरीर की सदा
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( अर्थशास्त्र ) वही यदि चन्द्रगुप्त शूद्र होता तो उसके लिए 'स्वाध्याय' और 'सध्या' का उपदेश न देता।

अस्तु, जहाँ तक देखा जाता है, चन्द्रगुप्त वैदिक-धर्म्मावलम्बी ही था और यह भी प्रसिद्ध है कि अशोक ही ने बौद्धधर्म को State Religion वनाया ।

अर्थशास्त्र में वर्षा होने के लिए इन्द्र की विशेष पूजा का उल्लेख है तथा शिव, स्कद, कुबेर इत्यादि की पूजा प्रचलित थी, इनके देवालय नगर के मध्य में रखना आवश्यक समझा जाता था।

अर्थशास्त्र २०६-५५ पृ०

R. C D Dutt का भी मत है कि चन्द्रगुप्त और उसका पुत्र बिन्दुसार बौद्ध नही था।

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