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रक्षा करती थी। वे रथो, घोडो और हाथियों पर राजा के साथ चलती थी, राज-दरवार बहुत आडम्वर से सजा रहता था, जो कि दर्शनीय रहता था । मेगास्थनीज इत्यादि ने इसका विवरण विस्तृत रूप से लिखा हैं।* पाटलीपुत्र नगरी मौर्य्य-राजधानी होने से बहुत उन्नत अवस्था में थी।

राजधानी में नगर का शासन-प्रबन्ध भी छ विभागों में विभक्त था । ओर उनके द्वारा पूर्णरूप से नगर का प्रबन्ध होता था । मेगास्थनीज़ लिखता है कि प्रथम विभाग उन कर्मचारियो का था, जो विक्रय वस्तुओ का मूल्य-निर्धारण और श्रमजीवियो का वेतन तथा शिल्पियो
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  • The district possesses special interest, both for Historian and Archeologist Patna City has been identified with Patliputra (See Plibothra of Megasthanes ), which supposed to have been founded six hundred years before the Christian era by Raja Ajatshatru, a contemporary of Gautam, the founder of the Buddhist religion.

( Imp Gaz of India, Vol XI, p 24 )

त्रिकाड शेप और हेमचन्द्र-अभिधान में तथा मुद्राराक्षस मे पाटलीपुत्र के दो और नाम पाये जाते है, एक कुसुमपुर और दूसरा पुष्पपुर। चीनी यात्री भी इन नामो से परिचित था । The pilgrimage of Fa-Hien में इसका विवरण है। हितोपदेश में लिखा है कि——— "अस्ति भागीरथीतीरे पाटलीपुत्र नाम नगरम् ।” पर ग्रीक लोगो ने उसे गंगा और हिरण्यवाह के तट पर होना लिखा है । इधर मुद्राराक्षस के "गोण सिन्दूरशोणा मम गजपतय पास्यन्ति शतश" से ज्ञात होता है कि वह गोण और गंगा के संगम पर था । पाटलीपुत्र कब बसा, इसका ठीक पता नहीं चलता । कथा-सरित्सागर के मत से इसे पुत्रक नामक ब्राह्मण-कुमार और पाटली नाग्नी राजकुमारी ने अपने नामो से बसाया था, पर इसके लिए जो कथा है, वह विश्वास के योग्य नही है ।