पृष्ठ:चन्द्रगुप्त मौर्य्य.pdf/४५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४४


से दसमाश लिया जाता था और उन्हें खूब सावधानी से कार्य करना होता था। जो उस कर को न देता, वह कठोर दण्ड से दण्डित होता था।

राज्य के कर्मचारी लोग भूमि की नाप और उसपर कर-निर्धारण करते थे और जल की नहरों का समुचित प्रवन्ध करते थे, जिससे सब कृषको को सरलता होती थी । रुद्रदामा के गिर्नारवाले लेख से प्रतीत होता है कि सुदर्शन हद महाराज चन्द्रगुप्त के राजत्व-काल में बना था । इससे ज्ञात होता है कि राज्य में सर्वत्र जल का प्रबन्ध रहता था तथा कृषको के लाभ पर विशेष ध्यान रहता था ।

राज्य के प्रत्येक प्रान्त में समाचार संग्रह करने वाले थे, जो सत्य समाचार चन्द्रगुप्त को देते थे। चाणक्य-सा बुद्धिमान् मन्त्री चन्द्रगुप्त को बडे भाग्य से मिला था और उसकी विद्वत्ता ऊपर लिखित प्रवन्धो से ज्ञात होती है । युद्धादि के समय में भी भूमि बराबर जोती जाती थी, उसके लिए कोई बाधा नही थी ।

राजकीय सेना मे, जिसे राजा अपने व्यय से रखते थे, रणतरी २००० थी ।* ८००० रथ, जो चार घोड़ों से जुते रहते थे, जिस पर एक रथी और दो योद्धा रहते थे । ४,००,००० पैदल असिचर्म्मधारी, धनुर्वाणवारी । ३०,००० अश्वारोही । ९०,००० रण-कुञ्जर, जिन पर महावत लेकर ४ योद्धा रहते थे और युद्ध के भारवाही, अश्व के सेवक तथा अन्यान्य सामग्री ढोनेवालो को मिलाकर ६,००,००० मनुष्यो की भीड़-भाड़ उस सेना में थी और उस सेना-विभाग के प्रत्येक ६ विभागो में ५ सदस्य रहते थे ।

प्रथम विभाग नौ-सेना का था । दूसरा विभाग युद्ध-सम्वन्धी भोजन, वस्त्र, छकडे, वाजा, सेवक और जानवरो के चारा का प्रवन्ध करता था ।
————————————————

“नदीपर्वतदुर्गीयाम्या नदीदुर्गीयात् भूमि लाभ श्रेयान् नदीदुर्गे हि हस्तिस्तम्भसक्रमसेतुबन्धूनीभिस्साव्यम्”–अर्थशास्त्र २९४

“नावध्यक्ष समुद्रसयाननदीमुखतर प्रचारान् देवमरोविसरोनदीतराश्च स्थानीयादिप्ववेक्षेत ।"——अर्थशास्त्र, प्रकरण ४५