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सूचक वैदिक हिन्दुओ का नही हो सकता , क्योकि वे प्राय ईश्वर को नमस्कार करते है। किन्तु कामसूत्र के मगलाचरण के सम्बन्ध में क्या होगा, जिसका मगलाचरण है “नमो धर्मार्थकामेभ्यो ।" इसमे भी तो ईश्वर की वदना नही की गई है । तो क्या वात्स्यायन भी जैन थे ? इसलिए यह सब बाते व्यर्थ है। जैनो के अतिरिक्त जिन लोगो का चरित्र उन लोगो ने लिखा है, उसे अद्भुत, कुत्सित और अप्रासंगिक बना डाला है । स्पष्ट प्रतीत होता है कि कुछ भारतीय चरित्रो को जैन ढाँचे में ढालने का जैन संस्कृत-साहित्य द्वारा असफल प्रयत्न किया गया है । यहाँ तक उन लोगो ने लिख डाला हैं कि चन्द्रगुप्त को भूख लगी तो चाणक्य ने एक ब्राह्मण के पेट से गुलगुले निकाल कर खिलाए । ऐसी अनेक आश्चर्यजनक कपोलकल्पनाओं के आधार पर चन्द्रगुप्त और चाणक्य को जैन बनाने का प्रयत्न किया जाता है ।

इसलिए बौद्धों के विवरण की ओर ही ध्यान आकर्षित होता है ? बौद्ध लोग कहते हैं कि "चाणक्य तक्षशिला-निवासी थे" और इधर हम देखते है कि तक्षशिला * में उस समय विद्यालय था जहाँ कि पाणिनि, जीवक आदि पढ़ चुके थे । अस्तु, सम्भवत चाणक्य, जैसा कि बौद्ध लोग कहते हैं, तक्षशिला में रहते या पढ़ते थे । जब हम चन्द्रगुप्त की सहायक सेना की ओर ध्यान देते हैं, तो यह प्रत्यक्ष ज्ञात होता है कि चाणक्य का तक्षशिला से अवश्य सम्बन्ध था, क्योकि चाणक्य अवश्य उनसे परिचित थे। नही तो वे लोग चन्द्रगुप्त को क्या जानते ? हमारा यही अनुमान है कि चाणक्य मगध के ब्राह्मण थे । क्योकि मगध में
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  • कनिंगहम साहब वर्तमान शाह देहरी के समीप में तक्षशिला, का होना मानते है । रामचन्द्र के भाई भरत के दो पुत्रों के नाम से उसी ओर दो नगरियाँ बसाई गई थी, तक्ष के नाम से तक्षशिला और पुष्कल के नाम से पुष्कलावती । तक्षशिला का विद्यालय उस समय भारत के प्रसिद्ध विद्यालयों में से एक था ।

च॰ ४

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