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नन्द की सभा में वे अपमानित हुए थें। उनकी जन्मभूमि पाटलीपुत्र ही थी।

पाटलीपुत्र इस समय प्रधान नगरी थी, चाणक्य तक्षशिला में विद्याध्ययन करके वहाँ से लौट आये। किसी कारणवश वह राजा पर कुपित हो गए, जिसके बारे में प्राय सब विवरण मिलते-जुलते है। वह ब्राह्मण भी प्रतिज्ञा करके उठा कि आज से जब तक नन्दवंश का नाश न कर लूँगा, शिखा न बाँधूँगा और फिर चन्द्रगुप्त को मिलाकर जो-जो कार्य उन्होने किए, वह पाठको को ज्ञात ही है।

जहाँ तक ज्ञात होता है, चाणक्य वेदधमविलम्वी, कूटराजनीतिज्ञ, प्रखर प्रतिभावान और हठी थें।

उनकी नीति अनोखी होती थी और उनमें अलौकिक क्षमता थी, नीति-शास्त्र के आचार्यों में उनकी गणना हैं। उनके बनाये नीचे लिखे हुए ग्रन्थ बतलाये जाते है―चाणक्यनीति, अर्थशास्त्र, कामसूत्र और न्यायभाष्य।

यह अवश्य कहना होगा कि वह मनुष्य बड़ा प्रतिभाशाली या जिसके बुद्धिबल-द्वारा, प्रशसित राजकार्य-क्रम से चन्द्रगुप्त ने भारत का साम्राज्य स्थापित करके उस पर राज्य किया।

अर्थशास्त्र में स्वंय चाणक्य ने लिखा है---

येन शस्त्र च शास्त्र च नन्दराजागता च भू।
अमर्षेणोद्धृतान्याशु तन शास्त्रमिद कृतम्॥

काशी जयशंकर प्रसाद
सं॰ १९६६