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प्रथम अंक
 

में बल पड़ने लगा है। समय आ गया है कि शूद्र राजसिंहासन से हटाये जायँ और सच्चे क्षत्रिय मूर्धाभिषिक्त हो।

नन्द—यह समझकर कि ब्राह्मण अवध्य है, तू मुझे भय दिखलाता है! प्रतिहारी, इसकी शिखा पकड़ कर उसे बाहर करो!

[प्रतिहारी उसकी शिखा पकड़कर घसीटता है, वह निश्शंक और दृढ़ता से कहता है]

खींच ले ब्राह्मण की शिखा! शूद्र के अन्न से पले हुए कुत्ते! खींच ले! परन्तु यह शिखा नन्दकुल की काल-सर्पिणी है, वह तब तक न बन्धन में होगी, जब तक नन्द-कुल निःशेष न होगा।

नन्द—इसे बन्दी करो।

[चाणक्य बन्दी किया जाता है]

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