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प्रथम अंक
 

[चार सैनिकों के साथ यवन का प्रवेश]

यवन—निकल गया—मेरा अहेर! यह सब प्रपंच इसी रमणी का है। इसको बन्दी बनाओ।

[सैनिक अलका को देखकर सिर झुकाते हैं]

यवन—बन्दी करो सैनिक!

सैनिक—मैं नहीं कर सकता।

यवन—क्यों, गांधार-नरेश ने तुम्हे क्या आज्ञा दी हैं?

सैनिक—यही कि, आप जिसे कहे, उसे हम लोग बन्दी करके महाराज के पास ले चले।

यवन—फिर विलम्ब क्यों?

[अलका संकेत से वर्जित करती है]

सैनिक—हम लोगों की इच्छा।

यवन—तुम राजविद्रोही हो?

सैनिक—कदापि नहीं, पर यह काम हम लोगो से न हो सकेगा।

यवन—सावधान! तुमको इस आज्ञा-भंग का फल भोगना पड़ेगा। मैं स्वयं बन्दी बनाता हूँ।

[अलका की ओर बढ़ता है, सैनिक तलवार खींच लेते हैं]

यवन—(ठहर कर)—यह क्या?

सैनिक—डरते हो क्या? कायर! स्त्रियो पर वीरता दिखाने में बड़े प्रबल हो और एक युवक के सामने से भाग निकले!

यवन—तो क्या, तुम राजकीय आज्ञा का स्वयं न पालन करोगे और न करने दोगे?

सैनिक—यदि साहस हो मरने का तो आगे बढ़ो।

अलका—(सैनिको से)—ठहरो, विवाद करने का समय नहीं है।—(यवन से)—कहो, तुम्हारा अभिप्राय क्या है?

यवन—मैं तुम्हे बन्दी करना चाहता हूँ।

अलका—कहाँ ले चलोगे?

च॰ ६

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