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चन्द्रगुप्त
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चन्द्रगुप्त—धन्यवाद! भारतीय कृतघ्न नहीं होतें। सेनापति! मैं आप का अनुगृहीत हूँ, अवश्य आप के पास आऊँगा।

[तीनों जाते हैं, अलका का प्रवेश]

अलका—आर्य चाणक्य और चन्द्रगुप्त—यें भी यवनों के साथी! जब आँधी और करका-वृष्टि, अवर्षण और दावाग्नि का प्रकोप हो, तब देश की हरी-भरी खेती का रक्षक कौन है? शून्य व्योम प्रश्न को बिना उत्तर दिए लौटा देता है। ऐसे लोग भी आक्रमणकारियों के चंगुल में फंस रहे हो, तब रक्षा की क्या आशा। झेलम के पार सेना उतरना चाहती हैं। उन्मत्त पर्वतेश्वर अपने विचारों में मग्न है। गांधार छोड़कर चलूँ, नहीं, एक बार महात्मा दाण्ड्यायन को नमस्कार कर लूँ, उस शान्ति-सन्देश से कुछ प्रसाद लेकर तब अन्यत्र जाऊँगी।

[जाती है]