पृष्ठ:चाँदी की डिबिया.djvu/२६

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चाँदी की डिबिया
[ अङ्क १
 

और कभी-कभी इतने थक जाते हैं कि घर आते ही गिर पड़ते हैं। भला यह कैसे कहूँ कि वह काम नहीं खोजते। ज़रूर खोजते हैं। रोजगार मंदा है।

[ वह टोकरी और झाड़ू सामने रक्खे चुप चाप खड़ी हो जाती है। ज़िन्दगी की अगली पिछली बातें किसी वन्य दृश्य की भाँति उसकी आखों के सामने आने लगती है, और वह उन्हें स्थिर, उदासीन नेत्रों से देखती है। ]

लेकिन मेरे साथ वह बुरी तरह पेश आते हैं। कल रात उन्हों ने मुझे पीटा और ऐसी ऐसी गालियां दीं कि रोंगटे खड़े होते हैं।

मारलो

बैंक की छुट्टी थी, क्यों? उसे होटल का चस्का पड़ गया है। यही बात है। मैं उसे रोज़ बड़ी रात तक कोने में बैठे देखता हूँ। वहीं

फिरा करता है।

१८