पृष्ठ:चाँदी की डिबिया.djvu/३

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निवेदन

हिन्दोस्तानी एकेडेमी ने पच्छिमी नाटक लिखनेवालों के अच्छे अच्छे ड्रामों के अनुवाद छापने का प्रबंध किया है। उद्देश्य यह है कि हमारे देश के लोगों को नये युग के नाटकों के पढ़ने का आनंद मिले। इसमें संदेह नहीं कि हिन्दी और उर्दू में नाटकों की कमी नहीं, लेकिन हमारे नाटकों में विचारों की तरतीब, घटनाओं के क्रम और भावों के वर्णन में कमी है। इसका हमें खेद है। हिन्दोस्तान को यूनान की तरह इस बात का गौरव है कि इसने नाटक को उत्पन्न किया और उसे उन्नति दी। उस समय के बाद सैंकड़ों साल योरुप और हिन्दोस्तान में नाटक की कला मुर्दा हालत में रही। लेकिन योरुप के नये जन्म (Renascence) में नाटक में भी जान आई और इंगलिस्तान, फ्रांस और देसों में ऊंचे दर्जे के नाटक लिखनेवाले पैदा हुए। उन्होंने ऐसे मारके के ड्रामे रचे कि सारे संसार में उनकी धूम मच गई। किन्तु शेक्सपियर के मरने पर ड्रामे की बस्ती सूनी सी हो गई और तीन सौ बरस के सत्राटे के बाद उन्नीसवीं सदी में इसमें फिर चहल