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चिन्तामणि

का उदय एक साथ बहुतों के हृदय में होगा। वह अवयव है, अच्छा या रमणीय लगना।

'हास' में भी यही बात होती है कि जहाँ उसका पात्र सामने आया कि मनुष्य अपना सारा सुख-दुख भूल एक विलक्षण आह्लाद का अनुभव करता है, जिसमें बहुत से लोग एक साथ योग देते हैं।

अपने निज के लाभवाले विकट कर्म की ओर जो उत्साह होगा वह तो रसात्मक न होगा, पर जिस विकट कर्म को हम लोककल्याणकारी समझेंगे उसके प्रति हमारे उत्साह की गति हमारी व्यक्तिगत परिस्थिति के संकुचित मण्डल से बद्ध न रहकर बहुत व्यापक होगी। स्वदेश-प्रेम के गीत गाते हुए नवयुवकों के दल जिस साहस-भरी उमंग के साथ कोई कठिन या दुष्कर कार्य्य करने के लिए निकलते हैं, वह वीरत्व की रसात्मक अनुभूति है*[१]

क्रोध, भय, जुगुप्सा और करुणा के सम्बन्ध में साहित्य-प्रेमियों को शायद कुछ अड़चन दिखाई पड़े क्योंकि इनकी वास्तविक अनुभूति


  1. *आज-कल के बहुत गम्भीर अँगरेज़ समालोचक रिचर्ड्‌स (I.A. Richards) को भी कुछ दशाओं में वास्तविक अनुभूति के रसात्मक होने का आभास सा हुआ है, जैसा कि इन पंक्तियों से प्रकट होता है—
    There is no such gulf between Poetry and life as over-literary person sometimes suppose There is no gap between our every day emotional life and the material or poetry. The verbal expression of this life, at its finest is forced to use the technique of poetry, X X X If we do not live in consonance with good poetry, we must live in consonance with bad poetry, I do not see how we can avoid the conclusion that a general insensitivity to poetry does witness allow level of general imaginative life.

    Practical Criticism. (Summary)