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रसात्मक-बोध के विविध रूप

या संयोग-काल के लिए मधुमास, शुभ्र के स्थान पर रजत या हंस, दीप्त के स्थान पर स्वर्ण इत्यादि। यह सारा व्यवसाय कल्पना ही का है।

काव्य की पूर्ण अनुभूति के लिए कल्पना का व्यापार कवि और श्रोता दोनों के लिए अनिवार्य्य है। काव्य की कोई उक्ति कान में पड़ते समय जब काव्य-वस्तु के साथ साथ वक्ता या बोद्धव्य पात्र की कोई मूर्त्त भावना भी खड़ी रहती है तभी पूरी तन्मयता प्राप्त होती है।