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चिन्तामणि


अपनी त्रुटि, बेढ़ंगेपन, धृष्टता इत्यादि का परिचय दूसरों को विशेषतः पुरुषों को—न मिले, इसका ध्यान स्त्रियों में बहुत अधिक और स्वाभाविक होता है, इसी से उनमें लज्जा अधिक देखी जाती है। वे सदा से पुरुषों के आश्रय में रहती आई हैं इससे 'हम धृष्ट या अप्रिय न लगें', इसकी आशंङ्का उनमें चिरस्थायिनी होकर लज्जा के रूप में हो गई है। बहुत-सी स्त्रियाँ ऐसी होती हैं—विशेषतः बड़े घरों कि—जिनकी काम-धंधे के रूप में भी लोगों के सामने हाथ-पैर हिलाने की धड़क नहीं खुली रहती, अतः उनका अधिक लज्जा-शील होना ठीक ही है। लोग लज्जा को स्त्रियों का भूषण कह-कहकर उनमें धृष्टता के दूषण से बचने का ध्यान और भी पक्का करते रहे। धीरे-धीरे उनके रूप-रंग के समान उनकी लज्जा भी पुरुषों के आनन्द और विलास की एक सामग्री हुई रस-कोविद लोग मुग्धा और मध्या की लज्जा का वर्णन कान में डालकर रसिकों को आनन्द से उन्मत्त करने लगे।