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चिन्तामणि

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चिन्तामणि कुछ अगाड़ी-पिछाड़ी खोल–पहेली के रूप में करके गॅवारो को चकित किया करते हैं । यह प्रवृत्ति शिक्षित और पढ़े-लिखे लोगो में और भी अनर्थ खड़ा करती है । यदि कोई व्यक्ति अभिज्ञानशाकुन्तल की आध्यात्मिक व्याख्या करे, मेघ की यात्रा को जीवात्मा का परमात्मा में लीन होने की साधन-पथ बताये, तो कुछ लोग तो विरक्ति से मुंह फेर लेगे, पर बहुत से लोग ऑखे फाड़ कर काष्ठकोशिक की तरह ताकते रह जायेंगे। कौन कविता सची रहस्य-भावना को लेकर चली है और कौन वादग्रस्त आडम्बर मात्र है, यह पहचानना कुछ कठिन नहीं है। ऊपर जो पहचान बताई गई है वह वण्र्य वस्तु ( Matter ) के सन्बन्ध मे है। वर्णन-प्रणाली (IForm ) की कुछ पहचान आगे कही जायगी । एक ही कवि कभी वादग्रस्त होकर अपने को लोक से परे प्रकट करने का शब्द-प्रयत्न करता है ; कभी भाव की स्वच्छ भूमि पर विचरण करती है। वहीं अवरक्रोवे जो कभी वादग्रस्त होकर 'चेतनानामक कोने से बाहर की बात कहने जाती है जव लोकवादी ( 1-1 1111ainitarian ) के रूप में हमारे सामने आता है, या विशुद्ध काव्यदृष्टि का प्रमाण देता है, तत्र उसकी सचाई मे सन्देह करने की कोई जगह नही रह जाती । यही बात श्रीरवीन्द्रनाथ ठाकुर के सम्बन्ध में भी ठीक समझनी चाहिए। उनकी रहस्यवाद की वे ही कविताएँ रमणीय हैं जो लोकपक्ष-समन्वित हैं; जैसे, ‘गीताञ्जलि' को यह प> जो कुछ दे तू हमें उसी से काम हमारी सरता है। कमी न होती उस्में कुछ वह पीछे तुझपर फिरता है। सरिताएँ सव बहती-बहती जग-हित आतीं जातीं । अविच्छिन्न धारा से तेरे पद धोने को फिर धार्ती । सभी कुसुम अपने सौरभ से सकल सृष्टि को महकाते । तेरी पूजा में मैं अपना महायोग हैं रच पाते ।