पृष्ठ:चिंतामणि दूसरा भाग.pdf/१०२

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६५ काव्य में प्राकृतिक दृश्य ६५ जग वंचित हो जिससे ऐसी तेरी पूजन-वस्तु नहीं । जग-हित में आई न वस्तु जो तव पूजन की नहीं, नहीं । “नू ने मुझे असीम बनाया है ऐसी कविताओं में यह बात नहीं है । इस ढंग की कविताओं के स्वरूप का कुछ उद्धाटन स्वर्गीय द्विजेन्द्रलाल राय ने अपनी समीक्षाओं में किया था । भारतीय काव्यदृष्टि के निरूपण में हम दिखा चुके हैं कि भारतवर्ष में कविता इस गोचर अभिव्यक्ति को लेकर ही बराबर चलती रही है और यही अभिव्यक्ति उसकी प्रकृत भूमि है। मनुष्य के ज्ञानक्षेत्र के भीतर ही उसका सञ्चार होता है। चेतना के कोने के बाहर न वह फॉकने जाती है, न जा ही सकती है । वहीं पर हम यह भी कह चुके हैं कि अभिव्यक्ति के क्षेत्र में स्थिर और निर्विशेष ( Static and Absolute ) सौन्दर्य या मङ्गल कहीं नहीं है । वह केवल किसी वाद के भीतर ही मिल सकती है। अभिव्यक्ति के क्षेत्र में गत्यात्मक सौन्दर्य और गत्यात्मक मङ्गल ही है । सौन्दर्यमङ्गल की यह गति नित्य है । गति की यही नित्यता जगत् की नित्यती है। रवीन्द्र बाबू के दोस्त ईट्स ( W. B. Yeats ) एक ओर कट्टर देशभक्त और आयर्लंड की अनन्य आराधना प्रवर्तित करनेवाले हैं ; दूसरी ओर ब्लेक ( Blake ) के साम्प्रदायिक और सिद्धान्त रहस्यवाद को पूरा समर्थन करनेवाले । वे भी जब वादमुक्त होकर काव्य की शुद्ध सामान्य भूमि पर आते है तब भारतीय दृष्टि के अनुसार सापेक्ष गत्यात्मक ( Dynaniac ) सौन्दर्य की नित्यता और अनन्तता का अनुभव करते हैं। अपनी “गुलाव” शीर्षक कविताओं में एक स्थल पर वे साफ कहते हैंRed Rose, proud Rose, sad Rose of all my days ! ४