पृष्ठ:चिंतामणि दूसरा भाग.pdf/११४

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काव्य में रहस्यवाद १०७ आलम्बन मात्र का वर्णन भी रसात्मक माना जाता है और वास्तव में होता है । योरप का यह अभिव्यञ्जनाचाद’ हमारे यहाँ के पुराने 'वक्रोक्तिवाद-वक्रोक्तिः काव्य-जीवितम्--का ही नया रूप या विलायती उत्थान है। अन्तर इतना ही है कि भंग्यन्तर के लिए हमारे यहाँ व्यञ्जना का अधिक सहारा लिया जाता है और योरप में लक्षणों को । योरप की भाषाओं में लाक्षणिक चपलता अधिक होती है । अनूठेपन का। काव्य में क्या स्थान है,यह बात अब विचार के लिए सामने आती है । जगत् की नाना वस्तुओं, व्यापारों और बातो को ऐसे रूप में रखना कि वे हमारे भावचक्र के भीतर आ जायें, यही काव्य का लक्ष्य होता है। विश्व की अनन्तता के बीच जिस प्रकार ज्ञान अपनी असार चाहता है, उसी प्रकार हृदय भी । वह भी अपने रमने के लिए नई-नई भूमि चाहता है। अनूठापन कहीं तो किसी भाव या मनोवृत्ति की व्यञ्जना में—अर्थात् जिन वाक्यों में उस भाव की व्यञ्जना होती है उनमें-और कहीं उस वस्तु या तथ्य में ही जिसकी ओर कवि अपने चित्रण-कौशल से भाव को प्रवृत्त करता है, होता है। सुबीते के लिए एक को हम भाच-पक्ष का अनूठापन कह सकते हैं , दूसरे को विभाव-पक्ष का ।। अनूठापन काव्य के नित्य स्वरूप के अन्तर्गत नही है , एक अतिरिक्त गुण है जिससे मनोरञ्जन की मात्रा बढ़ जाती है। इसके विना भी तन्मय करनेवाली कविता वरावर हुई है और होती है । । पद्माकर की इस सीधी-सादी उक्ति मे--नैन नचाय कह्यो मुसकाय, लला ! फिर आइयो खेलन होरी-पूरी रमणीयता है । जो लोग मनोरञ्जन को ही--किसी भाव में लीन होने को नहीं---काव्य का चरम लक्ष्य समझते हैं, वे सब जगह कुछ कुनूहुल की सामग्री ढूँढ़ते हैं । पर काव्य केवल कुतूहल उत्पन्न करनेवाली वस्तु नहीं हैं ; भिन्न