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चिन्तामणि

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११८ चिन्तामणि लिया जाता है; साहित्यिक वादों में नहीं । साहित्य के क्षेत्र में हरएक अपनी अलग हवा बहाने के फेर में रहता हैं और जरा सा बढ़ावा पाने पर किसी एक बात को लेकर हद से बहुत दूर निकल जाता है। “कला का उद्देश्य कला है इस वाद को प्रचार भी फ्रांस में प्रतिवर्तन के रूप में ही हुआ था । काव्य की पुरानी बॅधी रूढ़ियों को हटाकर, केवल मुक्त कल्पना र भावो की अप्रतिवद्ध गति को लेकर योरप में स्वच्छन्दतावाद ( Ronanticism ) का प्रचार हुआ । वह जब हद के बाहर जाने लगा और काव्य के विपय ऊटपटॉग तथा वर्णनशैली शिथिल और अशक्त होने लगी तब सन् १८६६ ई० में उसके प्रतिवाद के रूप में “कला का उद्देश्य कला' का सिद्धान्त लेकर कुछ लोग खड़े हुए। ये लोग पारनेसियन ( Parnass1eins ) कहलाए। इनका उद्देश्य काव्य में अधिक समीचीन प्रेरणा, सुडौल योजना और चित्ताकर्षक शैली का प्रचार करना था । इन पारनेसियन के पीछे सन् १८८५ ई० में ‘प्रतीकवादियो’ (Sinalbolists ot Decadents ) का एक सम्प्रदाय फ्रांस में खड़ा हुथा जिसने अनूठे 'रहस्यवाद’ और ‘भावोन्मादमयी भक्ति का सहारा लिया । हमारे यहाँ के श्रीरवीन्द्रनाथ ठाकुर ने अपनी 'गीताञ्जलि' का अँगरेजी अनुवाद प्रकाशित करके इसी सम्प्रदाय के सुर में सुर मिलाया था । कहने की आवश्यकता नहीं कि वंगभापा के प्रसाद से हिन्दी में इस वर्ग की प्रवृत्ति का अनुकरण खूब चल पडी | * Following upon the Parnassiens, about 18S5, came tlie Synibolists or Decadents a movement of dexterous mysticism and 'sentimental religiosity', too recent for satisfactory iustorical investigation. --Gayley & Kurtz: Methods and Materials of Literary Criticism