पृष्ठ:चिंतामणि दूसरा भाग.pdf/१३२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

काव्य में रहस्यवाद् | १२५ विम्ब के द्वारा सही, अंशतः ज्ञात रहता है। पर यदि रहस्यवादी 'अज्ञात', अगोचर', 'अभौतिक' का नाम न ले तो उसका 'वाद' कहीं नहीं रह जाता, जो उसे इतना प्रिय है। इस अज्ञात या अभौतिक के कारण उसे अपनी रचना में आडम्बर खड़ा करना पड़ता है, बातबात में असीम-ससम का राग अलापना पड़ता है ।। | अनिर्दिष्ट और धुंधली झलक या भावना में भी एक विशेष प्रकार का आकर्षण होता है जो स्निग्ध विस्मय, औत्सुक्य या अभिलाष उत्पन्न करता है। घने कुहरे या जाली के बीच किसी के रूपमाधुर्य की हलकी सी झलक मात्र पाकर हम केवल उत्सुक होगे । इसी औत्सुक्य की सतत प्रेरणा से उसका रूप निर्दिष्ट करने के लिए हमारी कल्पना प्रवृत्त रहा करेगी । रहस्यवादी अपनी यही स्थिति बतलाते है । वे भी प्रकृति के क्षेत्र से कुछ रूपो को चुनकर उनकी विलक्षण और दूरारूढ़ योजना कल्पना के भीतर करते है। अपना यह प्रयत्न वे अज्ञात के औत्सुक्य' द्वारा प्रेरित बताते हैं। यही तक कहकर रह जाते तो ज्यादः खटकने की बात न थी । इसके आगे बढ़कर वे यह भी सूचित करते हैं कि अपनी दूरारूढ़ रूपयोजना या भावना में वे अगोचर और अव्यक्त सत्ता का साक्षात्कार करते हैं। कुहरे या जाली के बीच में किसी के रूपमाधुर्य की हलकी झलक पानेवाला पीछे अपने मन में उसके रूप की जो तरह-तरह की कल्पना किया करता है, उसे उसी का रूप न समझती है, न कहता है । यदि कल्पना में आया हुआ रूप ही विम्ब या पारमार्थिक वस्तु है तब तो कल्पनात्मक रूप ३ ही आलम्बन ठहरे। सारा अभिलाष, सारा औत्सुक्य उन्हीं के लिए समझना चाहिए । कल्पनात्मक रूपो के इसी आलम्बनत्व की प्रतिष्ठा करके साम्प्रदायिक रहस्यवाद' काव्यक्षत्र में खड़ा हुआ। इंगलैड के पूर्ववर्ती रहस्यवादी कवि ब्लेक (Williarm Blace I757-1827) ने कल्पना