पृष्ठ:चिंतामणि दूसरा भाग.pdf/१३३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
१२६
चिन्तामणि

________________

१२६ चिन्तामणि का बड़े जोर से पल्ला पकड़ा और उसे नित्य पारमार्थिक सत्ता के रूप में ग्रहण करके कहा--- “कल्पना का लोक नित्य लोक है । यह शाश्वत और अनन्त है। उस नित्य लोक में उन सब वस्तुओं की नित्य और पारमार्थिक सत्ताएँ है जिन्हें हम प्रकृतिरूपी दर्पण में प्रतिविम्बित देखते है । इस प्रकार ब्लेक ने भक्तिरस में दृश्य जगत् की रूप-योजना को आलम्बन न कहकर, कल्पना-जगत् की रूप-योजना को लम्बन कहा। इस युक्ति से एक बड़ी भारी मजहबी रुकावट दूर हुई। इधर कविता प्रकृति के क्षेत्र से नानी रूप-रंग और मूर्त पदार्थ लिए विना एक कदम आगे बढ़ने को तैयार नहीं । धर मज़हब कागज़ी आँखे निकाले काले अक्षरों से घूर रहा था कि 'खबरदार ! स्थूल इन्द्रियार्थों के प्रलोभन में न पड़ना । मृर्त पूजा का पाप मन में न लाना ।' ब्लैक को कल्पना मे वस्तुओं का सूक्ष्म रूप ( यहाँ के पुराने लोगों के *लिङ्ग-शरीर के समान ) मिल गयो । स्थूलता के दोष का परिहार हो गया । मन भी छठी इन्द्रिय हैं, यह भावना स्पष्ट न होने से इन्द्रियासक्ति ( Sensualistan ) के दोपारोपण की सम्भावना भी दूर हुई समझी गई । भक्त कवियो को नाना मनोहर रूप के प्रति अनुराग प्रकट करने का लाइसेंस मिल गया। पूछताछ होने पर वे कह सकते थे कि वाह ! हम तो छाया के प्रेम द्वारा सारसत्ता को प्रेम प्रकट कर रहे है। एक हिसाव से बड़ी भारी काम हुआ । पर खुदा का कौन सा ऐसा काम है जिसमें शैतान न कूदे ? कल्पना में ईश्वरीय सारसत्ती

  • "The world of imagmation is tle world of Eternity . The world of inagination is infinite and eternal, whereas the world of generation or vegetation is finite and temporal

There exist in that eternal world i ealities of everything which we see reflected in the vegetable glass of nature"