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चिन्तामणि

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चिन्तामणि “दृश्य जगत में जो नाना रूप दिखाई पड़ते हैं वे तो अनित्य हैं, पर उन रूपी की जो भावनाएँ या कल्पनाएँ होती है वे अनित्य नहीं हैं । वे कल्पना-चित्र नित्य हैं । इसी कल्पना रूपी चिन्न-जगत् (आलमे भिसाल ) से इस आत्म-जगत् को जान सकते हैं जिसे ‘लमे गैव' और ‘लमे ख्वाब' भी कहते है । आँख मूंदने पर किसी वस्तु का जो रूप दिखाई पड़ता है वही उस वस्तु की आत्मा या सारसता है । अतः यह स्पष्ट है कि मनुष्य की आत्मा उन्ही रूपों की है जो रूप वाहर दिखाई पड़ते हैं। भेद इतना ही है कि अपनी सारसत्ता में स्थित रूप पिण्ड या शरीर से मुक्त होते हैं। सारांश यह कि आत्मा और वाह्य रूप का बिम्ब-प्रतिबिम्ब सम्बन्ध है । स्वप्न की अवस्था में आत्मा का यही सूक्ष्म रूप दिखाई पड़ता है । उस अवस्था में ऑख, कान, नाक आदि सबकी वृत्तियों रहती हैं, पर स्थूल रूप नहीं रहते ।। ब्लेक ने पैग़म्बरी झोक मे रहस्यवाद की बहुत-सी कविताएँ लिखीं जिनमें 'येरुशलम मुख्य हैं। इसके सम्बन्ध में उसने लिखा-- इसके रचयिता तो नित्य लोक में हैं, मै तो केवल सेक्रेटरी यो खास-कलम हूँ। मैं इसे संसार का सबसे भव्य काव्य समझता हूँ ।” पर दुनिया की राय इससे उलटी हुई और वही राय ठीक ठहरी ।ब्लेक की और कविताएं अच्छी हुईं ; पर रहस्यवाद की रचनाएँ निकम्मी ठहराई गई । Of this, lic said, he was inerely the secretary, "tlie authors are in Eternity I consider it the grandest poen this world contains' Unfortunately the world's opinion was radically different, and its opinion was entirely correct The mystic ivritings which form so large a part of Blake's output were alueless -A B De Mille “Literature in the Century," ( The Nineteenth Centuiy Series )