पृष्ठ:चिंतामणि दूसरा भाग.pdf/१४०

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काव्य में रहस्यवाद १३३ साहित्यिकों और शिक्षित पाठकों की कैसी धारणा रहती है, इसका पता एक इसी बात से लग सकता है कि मेरी स्टर्जन की उपर्युक्त पुस्तक ( Studies of Contenmporary Poets ) मे मिस मकाले की कविता के परिचय के आरम्भ में, उसे ‘रहस्यचोद’ की बताकर, यह भी कहना पड़ा है कि--- पर इससे ( रहस्यवाद की कविता होने से ) किसी का यह आशंका न होनी चाहिए कि अव निम्न कोटि की कविता का पापण्ड सामने रखा जायगा ) । रहस्यवाद की कविताओं में सबसे अधिक विरक्ति-जनक दो बातें होती हैं--भावों में सचाई का अभाव ( Instncerity ) और व्यञ्जना की कृत्रिमता ( Artificiality ) । उनमे व्यञ्जित अधिकांश भावों को कोई हृदय के सच्चे भाव नहीं कह सकता । अतः उनकी व्यञ्जना की उछल-कूद भी एक भद्दी नकल-सी जान पड़ती है। भावों की झूठी नकल का पता जल्दी लग जाता है। प्रत्येक सहृदय सच्ची कविता पढ़ते समय कवि या आश्रय के साथ तादात्म्य का अनुभव करता है । जहाँ अधिकांश पाठको में इस प्रकार के तादात्म्य को अभाव देखा गया कि वनावट का निश्चय स्वभावतः हो जाता है । पर साथ ही यह बात भी है कि चाहे किसी प्रकार की रचना हो जब वह एक फैशन के रूप में चला दी जाती है तब कुछ लोग बिना किसी प्रकार की अनुभूति के, यो ही रसज्ञ समझे जाने के लिए ही, वाह

  • It (the book is curiously interesting, since it may be reg. arded as the testament of mysticism for the year of its appearance, nineteen hundred and fourteen That is indeed the most important fact about it, though no one need begin to fear that he is to be fobbed off with inferior poetry on that account