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चिन्तामणि

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चिन्तामणि सम्बन्ध की स्थापना की--पर किस प्रकार डरते-डरते यह पूर्व विवरण से स्पष्ट है । फारस की सूफी शायरी में ब्राह्य जगत की सुन्दर वस्तुओ का प्रतीक ‘बुत' ( देवमूर्ति ) रहा । बुत-परस्ती के इलज़ाम के डर से भक्त. कवि लोग अपने प्रेम को सीधे बुतो ( प्रकृति की सुन्दर वस्तुओ ) के प्रति न बताकर “बुता के परदे मे छिपे हुए खुदा के प्रति बताया करते थे । फारस में वाह्य प्रकृति के सौन्दर्य-प्रसार की ओर दृष्टि बहुत परिमित रही । इससे वहाँ प्रतीक इने-गिने रहे । सुन्दर मनुष्य का ही प्रतीक लेकर चे अधिकतर चले । पर योरपवालो के प्रकृति-निरीक्षण का विस्तार बहुत बड़ा था । इससे वहाँ जव रहस्यवाद गया तत्र वहाँ की विस्तृत काव्यदृष्टि के अनुसार उसमें मृतं विधान अधिक वैचित्र्यपूर्ण हुआ । ब्लेक को रूपात्मक वाह्य जगत और मनुष्य की कल्पना के प्रत्यक्ष सम्बन्ध के विपर्यय का सिद्धान्त-रूप में, बड़े जोर शोर से प्रतिपादन करना पड़ा। भक्तिकाव्य में रहस्यवाद की उत्पत्ति के धार्मिक और सामाजिक कारण पर जो विचार करेगा उसे यह लक्षित हो जायगा कि यह सच द्राविड़ी प्राणायाम मजहवी तहजीब,धार्मिक शिष्टता (Religious courtesy) के अनुरोध से करना पड़ा । | भारतीय भक्ति काव्य को रहस्यवाद' का आधार लेकर नही श्वलना पड़ा । यहाँ के भक्त अपने हृदय से उठे हुए सच्चे भाव भगवान् की प्रत्यक्ष विभूति को बिना किसी संकोच और भय के बिना प्रतिविम्ववाद आदि वेदान्ती वादो को सहारा लिए---सीधे अर्पित करते । रहे । मुसलमानी अमलदारी में रहस्यवाद को लेकर जो ‘निर्गुण-भक्ति की चानी चली वह बाहर से---अरब और फारस की ओर से आई थी । वह देशी वेश में एक विदेशी वस्तु थी । इधर अँगरेजो के आने पर ईसाइयो के आन्दोलन के बीच जो ब्रह्मो-समाज बंगाल में स्थापित