पृष्ठ:चिंतामणि दूसरा भाग.pdf/१५०

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काव्य मे रहस्यवाद इसी प्रकार दूर से दिखाई पड़ती हुई पर्वतो की धुंधर्व चोटियाँ भी मनोवृत्ति को रहस्योन्मुख करती हैं और अप, भातर कल्पना को रूप-विन्यास करने का अवसर देती हैं। पश्चिम दिगञ्चल की सान्ध्य स्वर्णधारा के बीच धूम्र, कपिश घन-द्वीपों से होकर जाता हुआ स्वर्ग का मार्ग सा खुला दिखाई पड़ता है। विश्व की विशाल विभूति के भीतर न जाने कितने ऐसे दृश्य हमारी अन्तर्वृत्ति को रहस्योन्मुख करते है । | स्वाभाविक रहस्य-भावना बड़ी रमणीय और मधुर भावना है, इसमे सन्देह नहीं । रसभूमि में इसका एक विशेष स्थान हम स्वीकार करते हैं। उसे हम अनेक मधुर और रमणीय मनोवृत्तियों में से एक मनोवृत्ति या अन्तर्दशा ( Mood ) मानते हैं जिसका अनुभव ऊँचे कवि और-और अनुभूतियों के बीच कभी-कभी, प्रकरण प्राप्त होने पर, किया करते हैं। पर किसी ‘वाद के साथ सम्बद्ध करके उसे हम काव्य का एक सिद्धान्तमार्ग (Creed) स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है। योरप के जिस रहस्यवाद' को संक्षिप्त परिचय हमने दिया है। वह सिद्धान्ती या साम्प्रदायिक रहस्यवाद है। स्वाभाविक रहस्यभावना उक्त वाद से सर्वथा भिन्न है। किसी ‘वाद” के ध्यान से, साम्प्रदायिक सिद्धान्त के ध्यान से, जो कविता रची जायू उसमें चहुत कुछ अस्वाभाविकता और कृत्रिमता होगी । 'वाद' की रक्षा या प्रदर्शन के ध्यान में कभी-कभी क्या, प्रायः रस-सञ्चार का प्रकृत। मार्ग किनारे छूट जायगा । सिद्धान्ती या साम्प्रदायिक रहस्यवादियों के अतिरिक्त योरप के प्रसिद्ध कवियों में भी बहुत से ऐसे कवि हुए हैं जिनकी कुछ रचनाओं के बीच-बीच में बड़ी सुन्दर स्वाभाविक रहस्य-भावना पाई जाती है । वड्सवर्थं ( Wordsworth ) और शेली ( Shelley ) इसी प्रकार के कवि थे। इनकी रहस्य-भावना स्वाभाविक पद्धति पर होने के कारण