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चिन्तामणि

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चिन्तामणि हृदय में सच्ची अनुभूति उत्पन्न करती है। जिन तथ्यों या दृश्यो को लेकर इनकी वृत्ति रहस्योन्मुख हुई है उनके समक्ष सहदय मात्र रहस्य का अनुभव कर सकते हैं। बात यह है कि ये कचि रहस्यवादी नहीं । ये रहस्य को 'वाद' के रूप में लेकर नहीं चले है ! इन्होने सच्ची स्वाभाविक रहस्य-भावना की व्यञ्जना की है। इनकी भावना अभिव्यक्ति का सुत्र ग्रहण करके ही कभी-कभी रहस्योन्मुख हुई है। जगत् रूपी अभिव्यक्ति से तटस्थ, जीवन से तटस्थ, भावभूमि से तटस्थ कल्पना की झूठी कलाबाजी, भाव की नकली उछल-कूद और वैचित्र्य-विधायक कृत्रिम शब्दभङ्गी---जो आधुनिक रहस्यवादियों में अभिव्यञ्जनावादियों ( Expressionists ) के प्रभाव से आई है---वड्सवर्थ और शैली की कविता का लक्षण नहीं है। वसवर्थ की कविता ब्रह्म की प्रत्यक्ष विभूति प्रकृति से सीधा प्रेम-सम्बन्ध रखती है । कहीं-कहीं उसमें सर्ववाद ( Pantheism ) की भी झलक है, परोक्ष जगत् की ओर भी इशारा है, पर उसकी विचरण-भृमि प्रकृति का प्रकाशित क्षेत्र ही है। दूर तक फैले मैदान में कहीं धूप, कही छाया बारी-बारी से पड़ती देख चड्सवर्थ ने अपने लिए प्रकाश का क्षेत्र चुना और उनके साथी कालरिज (Coleridgc ) ने छाया का । पर कालरिज की छाया इस जगत् पर, इस जीवन पर, पड़ी हुई छाया थी । वह किसी ‘वाद” के अनुरोध से सारे जगत् को छाया और अपनी कल्पना को ईश्वरीय सन्ता बताता हुआ नहीं चला । उसका कहना यह था कि मनुष्य चारों ओर एक अज्ञात रहस्य से घिरा हुआ है जिसका परोक्ष विधान उसके जीवन का रंग बदला करता है। कालरिज का प्रस्तुत विषय जीवन हैं; परोक्ष रहस्य उसके बदलते हुए रंगो की हेतु-भावना के रूप में है। इससे कालरिज को भी हम सिद्धान्ती रहस्यवादी न कहकर स्वाभाविक रहस्य-भावना-सम्पन्न कवि मानते है ।