पृष्ठ:चिंतामणि दूसरा भाग.pdf/१५५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
१४८
चिन्तामणि

________________

१४६ चिन्तामणि है वह केवल लोकान्तर है। यह सङ्केत जीवन के जिस वास्तव तथ्य से कवि को मिला है, उसका स्पष्ट उल्लेख आगे चलकर है अपने लड़कपन के दिनो का स्मरण कीजिए ! वे ही हरे-भरे मैदान, अमराइयाँ और नाले अादि जो अव साधारण दृश्य जान पड़ते हैं, कैसी आनन्दमयी दिव्य प्रभा से मण्डित दिखाई पड़ते थे ! फूल अब भी सुन्दर लगते हैं, चन्द्रमा अव भी शरदकोश में सुहावना लगता है, पर इन सबकी वह दिव्य आभा अव पृथ्वी पर कहाँ जो लड़कपन मे हृदय को आनन्दोल्लास से भर देती थी ।। | शैली की मनोवृत्ति वर्डसवर्थ की मनोवृत्ति से बहुत भिन्न थी । उनकी वृत्ति प्रकृति के असामान्य, अद्भुत, भव्य और अधिक प्राचुर्यपूर्ण खण्डो मे रमती थी, इसी से उनमे कल्पना का आधिक्य है। सामान्य से सामान्य चिरपरिचित दृश्यो के माधुर्य की मार्मिक अनुभूति उनमें न श्री । दूसरी बात यह है कि वे कुछ अपने बँधे हुए विचार मन में लेकर प्रकृति के क्षेत्र में प्रवेश करते थे। वे मनुष्यजाति की वर्तमान स्थिति मे सिर से पैर तक उलट-फेर चाहते थे । राजनीतिक, सामाजिक, साम्प्रदायिक सब प्रकार की व्यवस्थाओ और वन्धनो को ने छिन्न-भिन्न देखा चाहते थे। पर इस प्रकार की कुछ विशेप प्रवृत्तियों रहते हुए भी प्रकृति की रूप-विभूति का ऐसा शृङ्खलावद्ध और संश्लिष्ट चित्रण थोड़े से इने गिने कवियो में ही मिल सकता है। ETECT." + Alastor, or the Spirit of Solitude ) मे एकान्त सुख-शान्ति का अन्वेपी एक कवि सारे भूमण्डल पर अकेला भ्रमण करता है । शेली उसे ऐसी-ऐसी भव्य, विशाल, अदृष्टपूर्व और अद्भुत चमत्कारपूर्ण दृश्यावलि के, बीच से ले गए है कि पाठक पढ़कर उनमे गड़ सा जाता है। प्रकृति के ऐसे-ऐसे गूढ़ गह्वरो तथा अनुपम और कमनीय क्रीड़ाक्षेत्रो में वह कवि पहुँचाया गया है। जहाँ मनुष्य ने कभी पैर नहीं रखा । एक नमूना देखिए