पृष्ठ:चिंतामणि दूसरा भाग.pdf/१५६

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काव्य में रहस्यवाद १४६ “प्रकृति के गुप्त से गुप्त पथो में वह उसकी छाया की तरह जाता है–जहाँ ज्वालामुखी से उठी हुई लपट की रक्त आभा तुषारमण्डित पर्वत-शिखर के ऊपर छाई हुई है। .....जहाँ ऐसी अटपटी अन्धेरी गुप्त गुफाएं हैं जो ज्वलन्त और विषाक्त धाराओं के बीच चक्कर खाती बड़ी दूर तक चली गई हैं और जिनमें अब तक ने लोभ मनुष्य को ले गया है, न साहस का अभिमान । गुफा के भीतर बड़े-बड़े दीवानखाने पड़े हैं जिनके ऊपर फैली हुई छत हीरे और सोने से जड़ी है । स्फटिक के ऊँचे-ऊँचे खम्भे खड़े है । बीच-बीच में उज्ज्वल मुक्तामयी वेदियों दिखाई पड़ती हैं। पुष्पराग के सिंहासन इधर-उधर पड़े झलकते हैं। कोह काफ ( काकेशस ) की ऐसी-ऐसी दुर्गम घाटियों के भीतर घूमती फिरती उस कवि की छोटी सी नाव बहती जाती है जिसके दोनों ओर ऊपर तो गगनस्पर्शी शिखर और नीचे जल में घुसी बेडौल चट्टानो पर अपनी जड़ो का जाल फैलाए वृक्षो की निविड़ और सघन राशि प्रकृति के खण्डो के ऐसे-ऐसे संश्लिष्ट और शृङ्खलावद्ध चित्रण उनके इसलाम का विप्लव' (The Revolt of Islain ) आदि काव्यो मे भरे पड़े है जैसे कहीं किसी रहस्यवादी कवि की रचना में नहीं मिल सकते । रहस्यवादी की काव्यदृष्टि एक बार में इतने विस्तार तक पहुँचती ही नहीं या पहुँचाई ही नहीं जाती। | शैली की पिछली रचनाओ में ही कहीं-कहीं रहस्य-भावना का उन्मेष पाया जाता है । “सौन्दर्य-बुद्धि की स्तुति' ( Hymn to Intellectual Beauty ) नाम की कविता में शेली ने उस नित्य गतिशील सौन्दर्य-सत्ता का स्तवन किया है जो समय-समय पर बाह्य प्रकृति को वसन्त-विकास के रूप में अपने नाना रंगो से जगमगाया करती है और मनुष्य के हृदय को प्रेम, आशा और गर्व से प्रफुल्ल किया करती है। हकने की जरूरत नहीं कि यह भावना गत्यात्मक