पृष्ठ:चिंतामणि दूसरा भाग.pdf/१६४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

काव्य में रहस्यवाद् | १५७ चाहे वे किसी रूप में रखे जायें, वास्तव में अलंकार मात्र होगे । अतः ऐसी कविताओं की परीक्षा करने पर उपमान-वाक्यो के ढेर के अतिरिक्त और कुछ नहीं बचता । किसी एक कविता के भीतर विचारो या भावनाओं का इधर-उधर भिन्न-भिन्न दिशाओं में प्रसार न होते चलने के कारण अप्रस्तुत वस्तुओं में भी पूरी विभिन्नता नहीं होती । एक प्रकार से ढेर भी समान रंग-ढंग की वस्तुओं का ही होता है । अतः। एकान्विति (Unity) और सम्बन्ध (Coherence) की, सच पूछिए तो, जगह ही नहीं होती । पर इन दोनों के बिना अच्छी से अच्छी सामग्री का बिखरा हुआ ढेर केला की कृति नही कहला सकता । सामग्री परस्पर जितनी ही भिन्न और अनेकांग-स्पशिणी होगी उतना ही उनकी सामंजस्यपूर्वक अन्वय कला का उत्कृष्ट विधान कहा जायगा । “छायावाद’ का पास लेकर काव्यक्षेत्र में आनेवाली अधिकांश रचनाओं में कोई भावना उठकर कुछ दूर तक साङ्गोपाङ्ग चलती नहीं दिखाई पड़ती । यह वास्तव में उपर्युक्त अवतरण-व्यापार का ही परिणाम है । वैचित्र्य के लोभ में भिन्न-भिन्न स्थलों से संगृहीत वाक्यो और पदविन्यास को एक मे समन्वित करना भी तो कठिन हीं है। किसी प्रकृत लिम्वन से सीधा लगाव न रखने के कारण भावों में जो सचाई का अभाव ( InsIncerity ) या कृत्रिमता ( Artificiality ) रहती है वह तो मूल ही से आई है। यह बात मैं उन रचनाओं के सम्बन्ध में कहता हूँ जो वास्तव में रहस्यवाद् या छायावाद के अन्तर्गत होती है । | एक चौथी बात जिसकी चर्चा छायावाद की कविता के साथ हुआ. कहती है वह छन्द-बन्धन का त्याग और लय ( Rythm ) का अवलम्बन है । पर यह एक बिल्कुल दूसरी हवा है जो अमेरिका की ओर से आई है। इसका रहस्यवाद यो छायावाद से कोई सम्बन्ध