पृष्ठ:चिंतामणि दूसरा भाग.pdf/१६६

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काव्य में रहस्यवाद १५६ चाहिए कि इसका रहस्यवाद से कोई सम्बन्ध नहीं । अतः इसके १ सम्बन्ध में हम यहाँ कुछ. अधिक नहीं कहा चाहते । छन्द और लय ( Rythm ) के विषय में विचार करते समय इतना अवश्य ध्यान में रखना चाहिए कि कविता एक बहुत ही पूर्ण कला है । इस पूर्णता के लिए वह सङ्गीत और चित्रकला दोनों की पद्धति या थोड़ा-बहुत सहारा लेती है। दोनों की रमणीयता का योग उसकी रमीयता के भीतर रहता है। जिस प्रकार रूप-विधान में वह चित्रविद्या को कुछ अनुसरण करती है, उसी प्रकार नाद-विधान में सङ्गीत का । छन्द वास्तव में बँधी हुई लय के भिन्न-भिन्न ढाँचो ( Patterns ) का योग है जो निर्दिष्ट लंबाई को होता है। लय स्वर के चढ़ाव-उतार के छोटे-छोटे ढाँचे ही है जो किसी छन्द के चरण के भीतर न्यस्त रहते हैं । । छन्द द्वारा होता यह है कि इन ढॉचों की मिति और इनके योग की मिति दोनो श्रोता को ज्ञात हो जाती है जिससे वह भीतर ही भीतर पढ़नेवाले के साथ ही साथ उसकी नाद की गति में योग देता चलता है। गाना सुनने के शौकीन गवैये के मुंह से किसी पद के पूरे होते-होते उसे किस प्रकार लोक लेते हैं, यह वराचर देखा जाता है। सय तथा लय के योग की मिति बिल्कुल अज्ञात रहने से यह बात नहीं हो सकती है जब तक कवि आप ही गाकर अपनी लय का ठीक-ठीक पता न देगा तब तक पाठक अपने मन में उसका ठीक-ठीक.. अनुसरण न कर सकेगा । अतः छन्द के बन्धन के सर्वथा त्याग में हमें तो अनुभूत नाद-सौन्दर्य की प्रेषणीयता ( ०11111]uticalbrity of Sound Iinpulse ) का प्रत्यक्ष ह्रास दिखाई पड़ता है। हाँ । नए-नए छन्दों के विधान को हमें अवश्य अच्छा समझते हैं । प्रेष्य भाव या विचारधारा की छोटाई-बड़ाई के हिसाब से छोटेवड़े चरणों की:पुर्वापर स्थिति होनी चाहिए, यह प्रायः कहा जाता