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चिन्तामणि

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१७४ चिन्तामणि | साहित्य के अन्तर्गत वह सारा वाड्मय लिया जा सकता है। जिससे अर्थ-वोध के अतिरिक्त भावोन्मेष अथवा चमत्कारपूर्ण अनुरजन हो तथा जिसमें ऐसे वाड्मय की विचारात्मक समीक्षा या व्याख्या हो । भावोन्मेष से मेरा अभिप्राय हृदय की किसी प्रकार की प्रवृत्ति से--रति, करुणा, क्रोध इत्यादि से लेकर रुचि अरुचि तक से---है और चमत्कार से अभिप्राय उक्ति-वैचित्र्य के कुतूहल से है । अर्थं से मेरा अभिप्राय वस्तु था विपय से है । अर्थ चार प्रकार के होते है---प्रत्यक्ष, अनुमित, प्राप्तोपलव्ध और कल्पित । प्रत्यक्ष की बात हम अभी छोडते हैं । भाव या चमत्कार से निःसङ्ग विशुद्ध रूप में अनुमित अर्थ का क्षेत्र दर्शन-विज्ञान है, आप्तोपलब्ध का क्षेत्र इतिहास है, कल्पित अर्थ का प्रधान क्षेत्र काव्य है। पर भाव या चमत्कार से समन्वित होकर ये तीनों प्रकार के अर्थ काव्य के आधार हो सकते हैं और होते हैं। यह अवश्य है कि अनुमित और आप्तोपलव्ध अर्थ के साथ काव्यमूमि में कल्पित अर्थ को योग थोड़ा रहता है, जैसे, दार्शनिक कविताओं में, रामायण, पद्मावत आदि ऐतिहासिक काव्यों में । रास्भीर-भाच-प्रेरित काव्यो में कल्पना प्रत्यक्ष और अनुमान के दिखाए मार्ग पर काम करती है और बहुत घना और बारीक काम करती है। कहने का तात्पर्य यह कि साहित्य के भीतर पहले तो वे सब कृतियों आती हैं जिनमें भाव-व्यञ्जक या चमत्कार-विधायक अंश पर्याप्त होता है, फिर उन कृतियों की रमणीयता और मूल्य हृदयंगम करानेवाली समीक्षाएँ या व्याख्याएँ । अर्थवोध कराना मात्र, किसी बात की जानकारी कराना मात्र, जिस कथन या प्रवन्ध का उद्देश्य होगा वह साहित्य के भीतर न आएगा, और चाहे जहाँ जाय ।। इस दृष्टि से साहित्य-क्षेत्र के भीतर आनेवाली रचनाओं के तीन रूप तो हमारे यहाँ पहले से मिलते हैं--श्रव्यकाव्य, दृश्यकाव्य और