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चिन्तामणि

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चिन्तामणि प्रकृत भाव दवने न पावे । इस उत्कर्ष के लिए कहीं-कही असाधारणत्व पहले मालम्वन में अधिष्ठित होकर भाव के उत्कर्ष का कारणस्वरूप होता है । पर यह कहा जा चुका है कि भावो के उत्कर्ष के लिए भी सर्वत्र आलम्वन का असाधारणत्व अपेक्षित नहीं होता । साधारण से साधारण वस्तु हमारे गम्भीर से गम्भीर भावो का आलम्बन हो सकती है । साहचर्य-जन्य प्रेम कितना चलवान् होता है, उसमे वृत्तियों को तल्लीन करने की कितनी शक्ति होती है यह सब लोग जानते है ; पर वह असाधारणत्व पर अवलम्बित नहीं होता। जिनका हमारा लड़कपन मे साथ रहा है, जिन पेड़ के नीचे, जिन टीलों पर, जिन नदी-नालो के किनारे हम अपने साथियों को लेकर बैठा करते थे, उनके प्रति हमारा प्रेम जीवन भर स्थायी होकर बना रहता है । अतः चमत्कारवादियों की यह समझ ठीक नहीं कि जहाँ असाधारणत्व होता है वही रस का परिपाक होता है, अन्यत्र नही ।। प्रसङ्ग-प्राप्त असाधारण सभी वस्तुओं का वर्णन कवि का कर्तव्य है। काव्य-क्षेत्र अजायबखाना या नुमाइशगाह नहीं है। जो सच्चा कवि हैं। उसके द्वारा अति साधारण वस्तुएं भी मन को तल्लीन करनेवाली होती है । साधारण के बीच में यथास्थान असाधारण की योजना करना सहृदय और कला-कुशल कवि का ही काम है। साधारणअसाधारण अनेक वस्तुओं के मेल से एक विस्तृत और पूर्ण चित्र सङ्घटित करनेवाले ही कवि कहे जाने के अधिकारी हैं। साधारण के वीच में ही असाधारण की प्रकृत अभिव्यक्ति हो सकती है। साधारण से ही असाधारण की सत्ता है । अतः केवल वस्तु के असाधारणत्व या व्यञ्जन-प्रणाली के असाधारणत्व में ही काव्य समझ बैठना अच्छी समझदारी नही ।। सारांश यह कि केवल असाधारणत्व-दर्शन की रुचि सच्ची सहृदयता की पहचान नहीं है । शोभा और सौन्दर्य की भावना के साथ