पृष्ठ:चिंतामणि दूसरा भाग.pdf/२००

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काव्य में अभिव्यञ्जनावद् १६३ - इसमें तो कुछ कहना ही नहीं कि कला सौन्दर्य का विधान करती है। पर काव्य आदि कला में असुन्दर और कुरूप वस्तुओं का वर्णन भी बरावर अस करता है । अतः अभिव्यञ्जना या उक्ति को न पकड कर वण्र्य वस्तु को पकडनेवालों के लिए सुन्दर के भीतर कुरूप या असुन्दर वस्तुओं के लिए स्थान निकालने में बड़ी अड़चल पडो । कुछ लोगों ने कहा कि काव्य आदि में असुन्दर और बीभत्स आदि विरुद्ध वस्तुएँ सुन्दर को और फलकाने के लिए रखी जाती हैं। पर क्रोचे के अनुसार यह सब बखेड़ा व्यर्थ है और अभिज्यञ्जना या उक्ति के स्वरूप को ही पकडने से दूर हो जाता है। अब क्रोचे के अनुसार अभिव्यञ्जना का असल स्वरूप क्या है, वह भी थोड़ी देख लीजिए । वह. कहता है कि साधारणत: लोग कवि के शब्दो, गायक के स्वरों, चित्रकार के खींचे हुए अाकारों को ही अभिव्यञ्जना समझा करते हैं । कभी अभिव्यञ्जना का अर्थ लज्जा से आँखें नीची करना, भय से काँपना, क्रोध से दाँत पीसना इत्यादि समझा जाता है। पर ये कला की अभिव्यञ्जना नहीं हैं, भौतिक अभिव्यन्जनाए हैं। अनेक प्रकार की उग्र चेष्टाएँ करते हुए, क्रोध से तिलमिलाते हुए मनुष्य में और कला-पक्ष से क्रोध की अभिव्यञ्जना करते हुए मनुष्य में बड़ा अन्तर है । इस प्रकार की भौतिक की अभिव्यञ्जना कला-शून्य होती है। काली की असल अभिव्यञ्जना तो है कल्पना, जो एक अध्यात्मिक क्रिया है। शब्द, रग, भौतिक रूप, चेष्टा इत्यादि तो कल्पना को, आध्यात्मिक वस्तु को, प्रकाशित करनेवाली भौतिक अभिव्यञ्जना है। कक्षा की अभिव्यञ्जना की प्रक्रिया का यह क्रम कहा जा सकता है (१) अन्तःसंस्कार ( Impressions ), ( २ ) अभिव्यञ्जना अर्थात् कलापरक अध्यात्मिक योजना या कल्पना ( Expression or Spiritual aesthetic synthesis ) । (३) सौन्दर्य की भावना से उत्पन्न आनुषंगिक आनन्द ( Hedon1stic accompaniment or pleasure of the beautiful ) (४) कलापरक आध्यात्मिक वस्तु ( कल्पना ) का स्थूल भौतिक रूप में अवतरण ( शब्द, स्वर, चेष्टा, रंग-रेखा आदि । इन सबमें मूल प्रक्रिया है नंवर २ अर्थात् अभिव्यञ्जना । ये चारो विधान पूरे हो जाने पर अभिव्यञ्जना का अनुष्ठान पूर्ण हो जाता है।