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चिन्तामणि

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चिन्तामणि सामञ्जस्य प्रतिष्ठित हो जाने पर ज्ञान-विज्ञान के साथ काव्य का कोई विरोध न दिखाई पड़ेगा ।। | हमारे यहाँ धर्म की रसात्मक अनुभूति या भक्ति में ज्ञान उक्त सामञ्जय के कारण कभी वावके नहीं हुआ और न धर्म ने आग और कुल्हाड़े से ज्ञान-विज्ञान का विरोध किया। हमारे यहाँ 'कर्म' और ‘उपासना' के समान 'ज्ञान' भी धर्म का एक अङ्ग बहुत प्राचीन काल से माना गया था । पर सामी मजदुत्रों में अक्ल का दखल न होने के कारण पाश्चात्य देशों में ज्ञान-विज्ञान के प्रचार में बहुत बाधा पड़ी थी । बुद्धि की स्वाभाविक क्रिया द्वारा उपलब्ध ज्ञान के लिए ईसाई मत में जगह न थी । अतः जब ईसाई मत में साम्प्रदायिक दर्शन ( Tincology ) की नींव डालने के लिए आर्य जातियों, विशेपतः। यूनानियो, के तत्वचिन्तको द्वारा प्रवर्तित ज्ञान की बात को लेने की आवश्यकता हुई तब वे मनुष्य की स्वाभाविक बुद्धि द्वारा उपलब्ध ज्ञान के रूप में तो ली नहीं जा सकती थीं । यहूदी, ईसाई आदि सामी मत के भीतर तो वे ही बाते ली जा सकती थी जो किसी वैगंबर, पहुँचे हुए रहस्यदर्शी सन्त या सिद्ध को ‘हाल,' 'मूच्छ अथवा प्रेमोन्माद की दशा में दिव्य प्रभास के रूप में प्राप्त हुई हो ।' प्रेमोन्माद या मूछों की दशा में रहस्यदश भक्त सन्तो को अन्तःकरण के भीतर 'ईश्वर का समागम' प्राप्त होता था और उस

  • The belief in mystical tlıcology and its connected phenomena was taken over by Christianity from Judaism Judaism tended to regard God as so transcendent and ineffable that he could deal with creatures only by angelic mediation. It was thic fashion to see or write of apocalypes, symbolic visions, angclic ministers

- Encyclopaedia of Religion and Ethics