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चिन्तामणि

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२२० चिन्तामणि संयत आत्मों धारण करती थी । वह परमात्म बोध के लिए शुद्ध चिन्तन-मार्ग को छोड़ रहस्यवाद के अन्धकार में भटकनेवाली नहीं थी । यही स्थिति प्राचीन भारतीय झार्यों की भी थी । यहाँ परमार्थतत्त्व-बोध के लिए बुद्धि की स्वाभाविक पद्धति, चिन्तन के विशुद्ध मार्ग के अतिरिक्त और कोई दूसरा मार्ग स्वीकृत न था । उपनिषद् की ब्राविद्या के प्रवर्तक इमी स्वाभाविक बुद्धि की निश्वयात्मिको वृत्ति द्वारा, शुद्ध अनुमान और विचार की परम्परा द्वारा, ज्ञान की उपलन्धि करते थे। उनके द्वारा प्रवर्तित हमारा ‘ज्ञानकाण्ड' मूच्र्छ, स्वप्न या बेहोशी की उपज नहीं है, तत्त्वचिन्तन का फल है। वहीं हमारे वेदान्त दर्शन के ब्रा-स्पर्शी प्रासाद की नीव है। उपनि पदों का तत्त्वज्ञानात्मक ( Rationalist 1. ) स्वरूप स्पष्ट है । उनमें बहुत से न संवाद के रूप में हैं, जिनमें शङ्का-समाधान भी है। जनक की सभा में शालार्थ के रूप में ब्रहावाद की चर्चा होती थी । पनिषदों के ऊः विचारों को ही व्यवस्थित शास्त्र के रूप में सङ्क, त करने के लिए बादरायण ने अहासूत्रों की रचना की । खेद है कि ईमई मत से प्रभावित ब्रह्मो-समाज ने उपनिषदो का पला पकड़कर उन्हें रहस्यवादी रूप देने का प्रयत्न किया । बहुत से

  • पिए मैकेनिकने । ) Miactacol } की पुस्तक "Indian Theism from the Vedic to the Noliammadan Peuod” [lean # क्र म दो वैदिक टु दी मुहम्मडन पीरीयड ] तथा Encyclopaedia of icitytoth art thick [ इन्पाक्नोपहिया व रेली जन एंड एथिक्स् ] में उनकी नियन्ध, जिसके नीचे लिखे हुए वाक्य ध्यान देने योग्य है--

it is truc of much in the Upanishads that it is seeking to «It cover the relations of man with the universe rather than liis relation with God It is often concerned with the relation of the knower and the known, rather than with that of the worshipper and Gol It gives a inctaphysic rather than an ethic or religion,