पृष्ठ:चिंतामणि दूसरा भाग.pdf/२२८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

काव्य में अभिव्यञ्जनावाद २२१ पाश्चात्य लेखकों ने बड़ी खुशी से उन्हें इस रूप मे ग्रहण किया और उपनिषदों के ज्ञान को रहस्यवाद की कोटि में रखा। बात यह है कि उस कोटि में जाने से उनका तात्त्विक मूल्य घट जाता है और प्राचीन भारतीय आर्यों की तत्त्वज्ञानसम्पन्नता कुछ ओट में पड़ जाती है। और यूनानियो की सामने दिखाई पड़ती है। उपनिषद् यदि रहस्यदर्शियों के स्वप्न या आभास हैं तब तो प्राचीन भारतीय भी सभ्यता की उसी सीढ़ी पर थे जिस पर प्राचीन यहूदी । उपनिषदो को रहस्यवाद कहने का आधार केवल, यही है कि उनकी कुछ बातें उपमाओ या लक्षणाओ के द्वारा कुछ अनूठे ढंग से कही हुई मिलती हैं । बात यह है कि उस प्राचीन काल में दानिक विवेचन को व्यक्त करने की व्यवस्थित शैली नहीं निकली थी । चिन्तन करते करते कभी कभी ऋषि भावोन्मुख भी हो जाते थे और अपनी बात अनूठी उक्ति के रूप में कह देते थे । ज्ञान जब प्राप्त होगा तव शुद्ध बुद्धि की क्रिया से ही । कल्पना, स्वप्न, भावोन्माद आदि द्वारा किसी उच्च कोटि का ज्ञान तो दूर की बात है साधारण बातें भी नहीं जानी जा सकतीं। न हम कान से देख सकते हैं, न नोक से सुन सकते हैं। पर प्रेमलक्षण भक्ति क्यो और किस प्रकार ज्ञान का भी एक रहस्यमय साधन सामी मजहबो में मानी गई, यह हम अभी दिखा आए हैं। रहस्यवादी जो बातें कहते हैं वे तत्त्वज्ञ दार्शनिको द्वारा निश्चित की हुई होती हैं, आसमान से टपकी यो आत्मा से उठी नहीं होती । उन्हीं बातो को सुनकर या इधर उधर से लेकर वे उन पर कल्पना का रंग चढ़ाते और उन्हें अनूठे। रूपको और अन्योक्तियों से कहा करते हैं । कोई कह सकता है।

  • It is not necessary to conclude that 'Oracular communication' or mysterious information, or ideas with novelty of content, come into the world through the secret door of