पृष्ठ:चिंतामणि दूसरा भाग.pdf/२३

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चिन्तामणि

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चिन्तामणि लिया गया वर्षा-वर्णन लेकर ऐसा ही कीजिए, और दोनो चित्रो को इस बात का ध्यान रखकर मिलाइए कि ये किष्किन्धों की पर्वतस्थली के चित्र हैं। आदिकवि का कैसा सूक्ष्म प्रकृति-निरीक्षण है, वस्तुओं और व्यापारी की कैसी संश्लिष्ट योजना है, उन्होने किस प्रकार एक-एक पेचीले व्योरे पर ध्यान दिया है, यह दिखाने के लिए नीचे कुछ पद्य दिए जाते है-- व्यामिश्रितं सर्जकदम्बपुप्पैर्नवं जलं पर्वतधातुताम्रम् । मयूरकेकाभिरनुप्रयातं गैलापगाः शीघ्रतरं वहन्ति ।। रसाकुल पट्पदसन्निकाशं प्रभुज्यते जम्बुफलं प्रकामम् । अनेकवर्ण पवनावधूतं भूम पतत्याम्रफलं विपक्वम् ।। मुक्तासकाशं सलिलं पतद्वै सुनिर्मलं पत्रपुटेपु लग्नम् । हृष्टा विवर्णच्छदन विहङ्गाः सुरेन्द्रदत्तं तृपिताः पिवन्ति ।।* अव पञ्चवटी में लक्ष्मण हेमन्त का कैसा दृश्य देख रहे हैं उसका एक छोटा सा नमूना लीजिए-- अवश्यायनिपातेन किञ्चित्प्रक्लिन्नशाला । वनाना शोभते भूमिर्निविष्टतरुणातपा ।। स्पृशंस्तु विपुलं शीतमुदकं द्विरदः सुखम् । अत्यन्ततृषितो वन्य प्रतिसंहरते करम् ।। अवश्यायतमोनद्धा नीहारतमसोवृता' । - प्रसुता इव लक्ष्यन्ते विपुष्पा वनराजयः ।। ३. पर्वत की नदियाँ सर्ज और कदम्ब के फूलों से मिश्रित, पर्वत धातुओं ( गेरू) से लाल, नए गिरे जल से कैसी शीघ्रता से बह रही हैं, जिनके साथ मौर बोल रहे हैं। रस से भरे भौरों के समान काले-काले जामुन के फलों को लोग खा रहे हैं। अनेक रङ्ग के पके आम के फल वायु के झोंके से टूटकर भूमि पर गिरते हैं | प्यासे पक्षी, जिनके पङ्ख पानी से बिगड़ गए हैं, मोती के समान इन्द्र के दिए हुए जल का, जो पत्तों की नोक पर लगा हुआ है, हर्षित होकर पी रहे हैं ।