पृष्ठ:चिंतामणि दूसरा भाग.pdf/२५०

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काव्य में अभिव्यञ्जनवाद । २४५ समझता । कहीं कहीं इससे उक्ति बिल्कुल अजनबी हो जाती है, जैसे**विचारों में बच्चो की सॉस ।' जो अंगरेजी के Inirnocent breath [इनॉसेंट ब्रेथ] से परिचित नहीं, वे इसे लेकर व्यर्थ हैरान होंगे । रचना करते समय इस बात का ध्यान पहले रहना चाहिए कि जो कुछ मैं लिख रहा हूँ हिन्दी-पढ़े लोगो के लिए लिख रहा हूँ; अंगरेजी-पढ़े लोगों के लिए नहीं । एक दिन मैंने देखा कि मेरे एक मित्र हिन्दी की एक मासिक पत्रिका लिए बैठे है । निकट आया, तब देखा कि उनके सामने एक कविता खुली है। उन्होंने मुझे देखते ही उसकी पहली ही पंक्ति पर उँगली रखकर कहा कि 'देखिए तो यह क्या है । वह पंक्ति क्स प्रकार थी--- मेरे जीवन के अंतिम पाहन । मैंने कहा यह कुछ नही, अंगरेज़ी को 'Last milestone' [ लास्ट माइलस्टोन ] है। अब ‘रीति' की बात लीजिए । 'रीति' का विधान शुद्ध नाद का प्रभाव उत्पन्न करने के लिए हुआ है। इसी दृष्टि से कोमल रसो मैं कोमल वर्षों और रौद्र, भयानक आदि उग्र और कठोर रसों में परुष और कर्कश वर्गों का प्रयोग अच्छा बताया गया है । पर इसका यह मतलब नहीं कि “मजु, मञ्जुल, प्राञ्जल” तथा “उद्दण्ड, प्रचण्ड, मार्तण्ड' लिखकर ही काव्य की सिद्धि समझ ली जाय। इसका मतलब इतना ही है कि पूर्ण प्रभाव उत्पन्न करने के लिए काव्य बहुत कुछ संगीत-तत्त्व का भी सहारा लेता है। बहुत सी रचनाएँ तो केवल पद-लालित्य और छन्द की मधुरता के कारण ही लोकप्रिय हो जाती है। संस्कृत-साहित्य मे रीति पर सबसे ज्यादा जोर देनेवाले वामन हुए है। | पर रीति' को बिल्कुल एक पुरानी बात समझकर टालना ने चाहिए। अभी एक प्रकार का फरासीसी रीतिवाद’ ( French Inmpressionism ) बड़े जोर-शोर से चला है, जिसमें शब्दो के