पृष्ठ:चिंतामणि दूसरा भाग.pdf/२५२

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३४७ काव्य में अभिव्यञ्जनावाद छूटेगा तो नई कर दवाएँगी–चाहे कुछ दिनो पीछे, वहाँ पुरानी हो जाने पर । इससे पहले से सावधान रहना मैं अच्छा समझता हूँ। योरप के वर्तमान साहित्य-क्षेत्र की सबसे नई घटना है “बुद्धि के साथ युद्ध' । इस युद्ध के नायक हैं फ्रांस के अनातोले फ्रांस ( Anatole France ), जिन्होने कहा है---“बुद्धि के द्वारा सत्य को छोड़कर और सब कुछ सिद्ध हो सकता है। मनुष्य बुद्धि या तर्क के आदेश पर कोई कर्म नही करता अपने प्रेम, घृणा, वैर, भय आदि मनोविकारो के आदेश पर ही सव कुछ करता है। बुद्धि पर उसे विश्वास नहीं होता । बुद्धि या तर्क का सहारा तो लोग अपनी भलीबुरी प्रवृत्तियों को ठीक प्रमाणित करने के लिए लेते हैं ।” ईसा की १६ वीं शताब्दी में जो अधिभौतिकवाद इतने जोर-शोर से योरप में उठा था उसी से क्षुब्ध होकर प्रतिकार-स्वरूप वहाँ कई प्रकार के आन्दोलन चले । 'आध्यात्मिकता' जगी, मशीनों का विरोध शुरू हुआ, मनुष्य-मात्र के साथ भातृभाव उमड़ा और अक्ल पर चढ़ाई बोल दी गई । और क्षेत्रों में क्या हुआ, इससे तो यहाँ प्रयोजन नहीं । साहित्य के क्षेत्र में जो हुआ या हो रहा है उसी की ओर थोड़ा ध्यान देने की ज़रूरत है। कुछ लोगों को एकबारगी यह भासित होने लगा कि अब जो अच्छे-अच्छे काव्य नहीं बनते हैं उसका एकमात्र कारण है बुद्धि । बुद्धि इतनी अधिक बढ़ गई है कि उसने प्रतिभा और भावना के वे सब रास्ते ही रोक दिए हैं जिनसे कविता का स्रोत बहा करता था । यह दशा देख कुछ लोग तो हाथ पर हाथ रखकर, निराश होकर, बैठ रहे और यह समझ लिया कि अब कविता-देवी का भोलापन सब दिन के लिए गया । अब इस युग में मनुष्य-जाति की अन्तवृत्ति बुद्धि से इतनी जकड़ उठी है कि कविता का पुनरुद्धार असम्भव है। इन्हीं नैराश्यवादियों में अनातोले फ्रांस' हैं। वर्तमान अंगरेजी साहित्य