पृष्ठ:चिंतामणि दूसरा भाग.pdf/२५६

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काव्य में अभिव्यञ्जनाबाद २५१ से विलक्षण तमाशा पूर्वोक्त कमिग्ज साहब (E. E, Cummings) • ने खड़ा किया है। उन्होने पदभंग, पदलोप, वाक्यलोप तथा अक्षर विन्यास, चरण-विन्यास इत्यादि के न जाने कितने नए नए करतब दिखाए हैं, जैसे सि-पाही स् ( १ ) टी-देता है। उनकी रचना का ढंग दिखाने के लिए उनकी एक कविता, थोड़े से आवश्यक हेर-फेर के साथ, नीचे देता हूँ। यद्यपि इसकी विचित्रताएँ बहुत कुछ अंगरेज़ी भाषा और उसके छन्दो की मात्रा आदि से सम्बन्ध रखती है और हिन्दी में नहीं दिखाई जा सकतीं, फिर भी कुछ अंदाजा रूप-रंग का हो जायगा । कविता यह है सूर्यास्त संदंश स्वर्ण 'गुन्’ जाल सिखर पर जत पाठ करता है। बड़े बड़े घटे वजते हैं गेरू से मोटे निठल्ने नारे और एक उत्तुङ्ग पवन । खींचता है। सागर को स्वप्न यह समुद्र के किनारे सूर्यास्त का वर्णन है जिसका विषय यह है। समुद्र की खारी हवा काटती सी है। डूबते सूर्य की किरने